ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 78/ मन्त्र 2
ऋषिः - कुरुसुतिः काण्वः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
आ नो॑ भर॒ व्यञ्ज॑नं॒ गामश्व॑म॒भ्यञ्ज॑नम् । सचा॑ म॒ना हि॑र॒ण्यया॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । भ॒र॒ । वि॒ऽअञ्ज॑नम् । गाम् । अश्व॑म् । अ॒भि॒ऽअञ्ज॑नम् । सचा॑ । म॒ना । हि॒र॒ण्यया॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो भर व्यञ्जनं गामश्वमभ्यञ्जनम् । सचा मना हिरण्यया ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नः । भर । विऽअञ्जनम् । गाम् । अश्वम् । अभिऽअञ्जनम् । सचा । मना । हिरण्यया ॥ ८.७८.२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 78; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 31; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 31; मन्त्र » 2
विषय - व्यञ्जनम्+अभ्यञ्जनम्
पदार्थ -
[१] हे प्रभो ! आप (नः) = हमारे लिये (व्यञ्जनम्) = विविध विज्ञानों के प्रकाश को [Making clear] (आभर) = प्राप्त कराइये। (गां अश्वम्) = ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों को प्राप्त कराइये। इन्हीं से तो हम उन विषयों के शास्त्रीय व क्रियात्मक ज्ञान को प्राप्त कर पायेंगे। इन विज्ञानों के द्वारा (अभ्यञ्जनम्) = Decoration अध्यात्म ज्ञान के अलंकरण को प्राप्त कराइये। ये विज्ञान अध्यात्म ज्ञान का सहायक बनें। [२] इस प्रकार, हे प्रभो! आप (सचा) = साथ-साथ ही हमारे लिये (मना) = इन मननीय (हिरण्यया) = हितरमणीय ज्ञानों को दीजिये ।
भावार्थ - भावार्थ - विविध विज्ञान 'व्यञ्जन' हैं, तो अध्यात्मज्ञान 'अभ्यञ्जन' है। प्रभु हमारे लिये इन व्यञ्जनों व अभ्यञ्जन को साथ-साथ प्राप्त कराएँ। इनके लिये हमें उत्तम ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों को दें।
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