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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 78 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 78/ मन्त्र 2
    ऋषिः - कुरुसुतिः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ नो॑ भर॒ व्यञ्ज॑नं॒ गामश्व॑म॒भ्यञ्ज॑नम् । सचा॑ म॒ना हि॑र॒ण्यया॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नः॒ । भ॒र॒ । वि॒ऽअञ्ज॑नम् । गाम् । अश्व॑म् । अ॒भि॒ऽअञ्ज॑नम् । सचा॑ । म॒ना । हि॒र॒ण्यया॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ नो भर व्यञ्जनं गामश्वमभ्यञ्जनम् । सचा मना हिरण्यया ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । नः । भर । विऽअञ्जनम् । गाम् । अश्वम् । अभिऽअञ्जनम् । सचा । मना । हिरण्यया ॥ ८.७८.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 78; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 31; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Bring us truth and beauty in manifestation, literature, culture and progress, and the ornaments of life, golden gracious for the peace of mind and joy of the heart.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या आवश्यक वस्तू असतील त्याच ईश्वराला मागाव्यात ॥२॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे ईश ! त्वम् । नोऽस्मभ्यं व्यञ्जनम् । गाम् । अश्वम् । अभ्यञ्जनञ्च तैलादिकञ्च । आभर । सचा=तैः सह । मना=मननीयानि । हिरण्यया=हिरण्मयानि उपकरणानि च । आहर ॥२ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    हे ईश ! तू (नः) हम मनुष्यों को (व्यञ्जनम्) विविध शाक पत्र आदि (गाम्) गौ, मेष आदि पशु (अश्वम्) अश्व हाथी आदि वाहन और (अभ्यञ्जनम्) तेल आदि तथा (सचा) इन पदार्थों के साथ (मना) मननीय (हिरण्यया) सुवर्णमय उपकरण (आभर) दे ॥२ ॥

    भावार्थ

    जो आवश्यक वस्तु हों, वे ही ईश्वर से माँगें ॥२ ॥

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    विषय

    उनसे भोजन, वस्त्र, आभूषणादि की प्रार्थना।

    भावार्थ

    तू ( नः ) हमें ( गाम् अश्वं ) गौ, अश्व और ( अभ्यञ्जनम् ) शत्रु पर जाने के साधन सवारी रथ, हाथी, आदि और विशेष रूप से जाने के साधन उत्तम रथ विमान आदि वा ( व्यञ्जनं ) विशेष चमकने वाले प्रकाश के उपाय, ज्ञान, आदि और नाना खाद्य पदार्थ, उत्तम गुण ( नः ) हमें ( आ भर ) प्राप्त करा। और ( सचा ) साथ ही ( मना ) मनन करने योग्य ( हिरण्यया ) हित और मनोहर वचन भी श्रवण करा।

    टिप्पणी

    व्यञ्जनं अभ्यञ्जनं—अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु। रुधादिः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कुरुसुतिः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ३ निचृद् गायत्री। २, ६—९ विराड् गायत्री। ४, ५ गायत्री। १० बृहती॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    व्यञ्जनम्+अभ्यञ्जनम्

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो ! आप (नः) = हमारे लिये (व्यञ्जनम्) = विविध विज्ञानों के प्रकाश को [Making clear] (आभर) = प्राप्त कराइये। (गां अश्वम्) = ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों को प्राप्त कराइये। इन्हीं से तो हम उन विषयों के शास्त्रीय व क्रियात्मक ज्ञान को प्राप्त कर पायेंगे। इन विज्ञानों के द्वारा (अभ्यञ्जनम्) = Decoration अध्यात्म ज्ञान के अलंकरण को प्राप्त कराइये। ये विज्ञान अध्यात्म ज्ञान का सहायक बनें। [२] इस प्रकार, हे प्रभो! आप (सचा) = साथ-साथ ही हमारे लिये (मना) = इन मननीय (हिरण्यया) = हितरमणीय ज्ञानों को दीजिये ।

    भावार्थ

    भावार्थ - विविध विज्ञान 'व्यञ्जन' हैं, तो अध्यात्मज्ञान 'अभ्यञ्जन' है। प्रभु हमारे लिये इन व्यञ्जनों व अभ्यञ्जन को साथ-साथ प्राप्त कराएँ। इनके लिये हमें उत्तम ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों को दें।

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