ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 10/ मन्त्र 1
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
प्र स्वा॒नासो॒ रथा॑ इ॒वार्व॑न्तो॒ न श्र॑व॒स्यव॑: । सोमा॑सो रा॒ये अ॑क्रमुः ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । स्वा॒नासः॑ । रथाः॑ऽइव । अर्व॑न्तः । न । श्र॒व॒स्यवः॑ । सोमा॑सः । रा॒ये । अ॒क्र॒मुः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र स्वानासो रथा इवार्वन्तो न श्रवस्यव: । सोमासो राये अक्रमुः ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । स्वानासः । रथाःऽइव । अर्वन्तः । न । श्रवस्यवः । सोमासः । राये । अक्रमुः ॥ ९.१०.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 34; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 34; मन्त्र » 1
विषय - रथों की तरह या घोड़ों की तरह
पदार्थ -
[१] (सोमासः) = शरीर में सुरक्षित हुए हुए सोम (प्र स्वानासः) = प्रकृष्ट शब्दोंवाले (रथाः इव) = रथों के समान होते हैं, 'रथ' यात्रा की पूर्ति का साधन होता है। ये सोम भी यात्रा पूर्ति का प्रमुख साधन बनते हैं। गतिमय रथ में ध्वनि होती है, इन सोमों के सुरक्षित होने पर मनुष्य प्रभु के सूक्तों का उच्चारण करता है। [२] ये सोम (अर्वन्तः न) = घोड़ों के समान (श्रवस्यवः) = यश की कामनावाले होते हैं। घोड़े बाह्य शत्रुओं को विजित करने में सहायक होते हैं शत्रु विजय से वे हमें यशस्वी बनाते हैं। सुरक्षित सोम अन्तः शत्रुओं को पराजित करके हमें यशस्वी बनाता है। ये सुरक्षित (सोमासः) = सोम (राये) = हमारे ऐश्वर्य के लिये (अक्रमुः) = गतिवाले होते हैं। इनके द्वारा हमारे ऐश्वर्य का वर्धन ही वर्धन होता है ।
भावार्थ - भावार्थ- हम सोम का रक्षण करें। ये हमें जीवनयात्रा की पूर्ति में रथ का काम देंगे, युद्ध में विजय के लिये ये घोड़ों के समान होंगे तथा हमारे ऐश्वर्य के वर्धन का साधन बनेंगे।
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