Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 24 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्र सोमा॑सो अधन्विषु॒: पव॑मानास॒ इन्द॑वः । श्री॒णा॒ना अ॒प्सु मृ॑ञ्जत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । सोमा॑सः । अ॒ध॒न्वि॒षुः॒ । पव॑मानासः । इन्द॑वः । श्री॒णा॒नाः । अ॒प्ऽसु । मृ॒ञ्ज॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सोमासो अधन्विषु: पवमानास इन्दवः । श्रीणाना अप्सु मृञ्जत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सोमासः । अधन्विषुः । पवमानासः । इन्दवः । श्रीणानाः । अप्ऽसु । मृञ्जत ॥ ९.२४.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] (सोमासः) = सोमकण (प्र अधन्विषुः) प्रकृष्ट गतिवाले होते हैं। सुरक्षित होने पर सोम हमें उत्कृष्ट मार्ग पर चलनेवाला बनाते हैं। ये (पवमानासः) = हमें पवित्र करते हैं । (इन्दवः) = हमें शक्तिशाली बनाते हैं। [२] (श्रीणाना:) = हमारे जीवन को परिपक्व करते हुए ये सोम (अप्सु) = कर्मों में (मृञ्जत) = शुद्ध होते हैं। सोमरक्षण से शरीर में सब शक्तियों का उत्तम परिपाक होता है। इस सोम का शोधन व रक्षण निरन्तर कर्मों में लगे रहने से होता है। यह कर्मतत्परता हमें वासनाओं से बचाती है। और वासनाओं के अभाव में सोम सुरक्षित बना रहता है।

    भावार्थ - भावार्थ- सोमरक्षण से [क] हम प्रकृष्ट गतिवाले होते हैं, [ख] पवित्रता को प्राप्त करते हैं, [ग] शक्तिशाली बनते हैं, [घ] सब शक्तियों का ठीक से परिपाक कर पाते हैं। इस सोम की शुद्धि कर्मों में लगे रहने से होती है ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top