ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 23/ मन्त्र 7
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒स्य पी॒त्वा मदा॑ना॒मिन्द्रो॑ वृ॒त्राण्य॑प्र॒ति । ज॒घान॑ ज॒घन॑च्च॒ नु ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्य । पी॒त्वा । मदा॑नाम् । इन्द्रः॑ । वृ॒त्राणि॑ । अ॒प्र॒ति । ज॒घान॑ । ज॒घन॑त् । च॒ । नु ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्य पीत्वा मदानामिन्द्रो वृत्राण्यप्रति । जघान जघनच्च नु ॥
स्वर रहित पद पाठअस्य । पीत्वा । मदानाम् । इन्द्रः । वृत्राणि । अप्रति । जघान । जघनत् । च । नु ॥ ९.२३.७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 23; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 7
विषय - आनन्द व अनुपम शक्ति
पदार्थ -
[१] (मदानाम्) = मदों में, हर्षो में अत्यन्त हर्षजनक (अस्य पीत्वा) = इस सोम का [वीर्य का] पान करके (इन्द्रः) = यह जितेन्द्रिय पुरुष (अप्रति) = एक अनुपम [ matchless ] योद्धा की तरह (वृत्राणि) = वृत्रों को, ज्ञान की आवरणभूत वासनाओं को जघान नष्ट करता है (च) = और (नु) = निश्चय से (जघनत्) = विनष्ट करता है। [२] सुरक्षित हुआ हुआ सोम अद्भुत आनन्द को प्राप्त कराता है। और हमें अनुपम शक्तिवाला बनाकर वासनाओं के विनाश के योग्य बनाता है ।
भावार्थ - भावार्थ- सुरक्षित सोम से हम आनन्द का अनुभव करते हैं। इससे शक्ति सम्पन्न बनकर हम वासनाओं का विनाश करनेवाले होते हैं । सोमरक्षण के महत्त्व को ही अगले सूक्त में भी देखिये-
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