ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 27/ मन्त्र 5
ए॒ष सूर्ये॑ण हासते॒ पव॑मानो॒ अधि॒ द्यवि॑ । प॒वित्रे॑ मत्स॒रो मद॑: ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । सूर्ये॑ण । हा॒स॒ते॒ । पव॑मानः । अधि॑ । द्यवि॑ । प॒वित्रे॑ । म॒त्स॒रः । मदः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष सूर्येण हासते पवमानो अधि द्यवि । पवित्रे मत्सरो मद: ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । सूर्येण । हासते । पवमानः । अधि । द्यवि । पवित्रे । मत्सरः । मदः ॥ ९.२७.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 27; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 5
विषय - सूर्य से स्पर्धा
पदार्थ -
[१] (एषः) = यह सोम (सूर्येण) = सूर्य से (हासते) = स्पर्धा करता है [हासतिः स्पर्धाकर्माणि] । अर्थात् सुरक्षित हुआ हुआ सोम हमें सूर्य के समान तेजस्वी बनाता है। (पवमानः) = यह हमें पवित्र करता है। (अधि द्यवि) = मस्तिष्करूप द्युलोक में सूर्य के समान ज्ञान- ज्योतिवाला होता है। [२] (पवित्रे) = पवित्र हृदयवाले पुरुष में (मत्सरः) = आनन्द का संचार करनेवाला होता है और मदः-उल्लास का जनक होता है ।
भावार्थ - भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें सूर्य के समान दीप्तिवाला करता है ।
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