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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 59 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 59/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अवत्सारः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    पव॑मान॒ स्व॑र्विदो॒ जाय॑मानोऽभवो म॒हान् । इन्दो॒ विश्वाँ॑ अ॒भीद॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पव॑मान । स्वः॑ । वि॒दः॒ । जाय॑मानः । अ॒भ॒वः॒ । म॒हान् । इन्दो॒ इति॑ । विश्वा॑न् । अ॒भि । इत् । अ॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवमान स्वर्विदो जायमानोऽभवो महान् । इन्दो विश्वाँ अभीदसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पवमान । स्वः । विदः । जायमानः । अभवः । महान् । इन्दो इति । विश्वान् । अभि । इत् । असि ॥ ९.५९.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 59; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 16; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    [१] हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले सोम ! तू (जायमानः) = शरीर में प्रादुर्भूत होता हुआ (स्वः) = प्रकाश को (विदः) = प्राप्त कराता है । और (महान् अभवः) = महान् होता है। वस्तुतः शरीर में सुरक्षित सोम हमें महान् बनाता है। इसके रक्षण से ही हम कोई महान् कार्य कर पाते हैं । [२] हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! तू (इत्) = निश्चय से विश्वान् शरीर में प्रविष्ट हो जानेवाले रोगों व काम-क्रोध आदि को (अभि असि) = अभिभूत करनेवाला है। सोम हमें नीरोग व निर्मल हृदय बनाता है।

    भावार्थ - भावार्थ- सोम हमें प्रकाश को प्राप्त कराता है, महान् बनाता है और सब अशुभों को अभिभूत कर लेता है। अवत्सार ऋषि का यह अन्तिम सूक्त है-

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