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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 80 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 80/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसुर्भारद्वाजः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    सोम॑स्य॒ धारा॑ पवते नृ॒चक्ष॑स ऋ॒तेन॑ दे॒वान्ह॑वते दि॒वस्परि॑ । बृह॒स्पते॑ र॒वथे॑ना॒ वि दि॑द्युते समु॒द्रासो॒ न सव॑नानि विव्यचुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑स्य । धारा॑ । प॒व॒ते॒ । नृ॒ऽचक्ष॑सः । ऋ॒तेन॑ । दे॒वान् । ह॒व॒ते॒ । दि॒वः । परि॑ । बृह॒स्पतेः॑ । र॒वथे॑न । वि । दि॒द्यु॒ते॒ । स॒मु॒द्रासः॑ । न । सव॑नानि । वि॒व्य॒चुः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमस्य धारा पवते नृचक्षस ऋतेन देवान्हवते दिवस्परि । बृहस्पते रवथेना वि दिद्युते समुद्रासो न सवनानि विव्यचुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमस्य । धारा । पवते । नृऽचक्षसः । ऋतेन । देवान् । हवते । दिवः । परि । बृहस्पतेः । रवथेन । वि । दिद्युते । समुद्रासः । न । सवनानि । विव्यचुः ॥ ९.८०.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 80; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] (नृचक्षसः) = मनुष्यों को देखनेवाले, उनका ध्यान करनेवाले, (सोमस्य) = सोम की (धारा) = धारणशक्ति हमें (पवते) = प्राप्त होती है। यह सोम (ऋतेन) = ऋत के द्वारा, यज्ञादि कर्मों में हमें प्रवृत्त करने के द्वारा, (दिवः परि) = द्युलोक के ऊपर, अर्थात् ज्ञानशिखर पर हमें पहुँचाकर (देवान् हवते) = देवों को पुकारता है, हमारे अन्दर दिव्य गुणों का धारण करता है। इस सोमरक्षण से- [क] हमारा शरीर यज्ञादि कर्मों में लगता है, [ख] मस्तिष्क ज्ञानवृद्धि में तत्पर होता है, [ग] और हृदय दिव्य गुणों का अधिष्ठान बनता है। [२] सोमरक्षण से जब हृदय दिव्यगुणों का अधिष्ठान बनता है, तो यह (बृहस्पतेः) = उस ज्ञान के स्वामी प्रभु के (रवथेन) = प्रेरणात्मक शब्दों से (विदिद्युते) = चमक उठता है । ये प्रभु प्रेरणा को सुननेवाले व्यक्ति (समुद्रासः न) = ज्ञान के समुद्र से बने हुए (सवनानि) = जीवन के तीनों सवनों को (विव्यचुः) = विस्तृत करते हैं। ये प्रथम २४ वर्ष के प्रातः सवन, अगले ४४ वर्षों के माध्यनिन्दनसवन तथा अन्तिम ४८ वर्षों के तृतीयसवन को सुन्दरता से बिताते हुए एक सौ सोलह वर्ष के दीर्घजीवन को प्राप्त करते हैं।

    भावार्थ - भावार्थ- सुरक्षित सोम हमारे हाथों में यज्ञों, मस्तिष्क में ज्ञान तथा हृदय में दिव्यगुणों को स्थापित करता है । उस समय हमारा हृदय प्रभु-प्रेरणा से दीप्त हो उठता है। हम ज्ञान-समुद्र बनकर दीर्घजीवन को बितानेवाले बनते हैं ।

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