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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 80 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 80/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसुर्भारद्वाजः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    यं त्वा॑ वाजिन्न॒घ्न्या अ॒भ्यनू॑ष॒तायो॑हतं॒ योनि॒मा रो॑हसि द्यु॒मान् । म॒घोना॒मायु॑: प्रति॒रन्महि॒ श्रव॒ इन्द्रा॑य सोम पवसे॒ वृषा॒ मद॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । त्वा॒ । वा॒जि॒न् । अ॒घ्न्याः । अ॒भि । अनू॑षत । अयः॒ऽहतम् । योनि॑म् । आ । रो॒ह॒सि॒ । द्यु॒ऽमान् । म॒घोना॑म् । आयुः॑ । प्र॒ऽति॒रत् । महि॑ । श्रव॑ । इन्द्रा॑य । सो॒म॒ । प॒व॒से॒ । वृषा॑ । मदः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यं त्वा वाजिन्नघ्न्या अभ्यनूषतायोहतं योनिमा रोहसि द्युमान् । मघोनामायु: प्रतिरन्महि श्रव इन्द्राय सोम पवसे वृषा मद: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम् । त्वा । वाजिन् । अघ्न्याः । अभि । अनूषत । अयःऽहतम् । योनिम् । आ । रोहसि । द्युऽमान् । मघोनाम् । आयुः । प्रऽतिरत् । महि । श्रव । इन्द्राय । सोम । पवसे । वृषा । मदः ॥ ९.८०.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 80; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    [१] हे (वाजिन्) = शक्ति सम्पन्न सोम ! (यं त्वा) = जिस तुझ को (अघ्न्याः) = ये अहन्तव्य वेदवाणी रूप गौएं (अभ्यनूषत) = स्तुत करती हैं, वेदवाणी का सदा स्वाध्याय करना ही चाहिए, इसी से अहन्तव्य कहलाती है। इसमें सोम का स्तवन विस्तार से उपलब्ध होता है। यह सोम (द्युमान्) = ज्योतिर्मय है, ज्ञानाग्नि को दीप्त करनेवाला है, हे सोम ! द्युमान् होता हुआ तू (अयोहतम्) = लोहे से घड़े हुए, अर्थात् अत्यन्त दृढ़ (योनिम्) = इस अपने उत्पत्ति स्थानभूत शरीर में (आरोहसि) = आरोहण करता है । यह सोम ही तो शरीर को सुदृढ़ बनाता है । [२] (मघोनाम्) = यज्ञशील पुरुषों के (आयुः प्रतिरन्) = आयुष्य को बढ़ाता हुआ, हे सोम ! तू (इन्द्राय) = इस जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (महि श्रवः) = महनीय ज्ञान को पवसे प्राप्त कराता है। तू (वृषा) = इस इन्द्र को शक्तिशाली बनाता है और (मदः) = उसके जीवन में उल्लास का जनक है।

    भावार्थ - भावार्थ-वेद सोम की महिमा का गायन करता है। [क] यह शरीर को दृढ़ बनाता है, [ख] मस्तिष्क को ज्योतिर्मय करता है, [ग] जीवन को वीर्य बनाता है, [घ] हमें शक्ति सम्पन्न करता हुआ उल्लास व आनन्द का जनक होता है।

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