ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 89/ मन्त्र 7
व॒न्वन्नवा॑तो अ॒भि दे॒ववी॑ति॒मिन्द्रा॑य सोम वृत्र॒हा प॑वस्व । श॒ग्धि म॒हः पु॑रुश्च॒न्द्रस्य॑ रा॒यः सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम ॥
स्वर सहित पद पाठव॒न्वन् । अवा॑तः । अ॒भि । दे॒वऽवी॑तिम् । इन्द्रा॑य । सो॒म॒ । वृ॒त्र॒ऽहा । प॒व॒स्व॒ । श॒ग्धि । म॒हः । पु॒रु॒ऽच॒न्द्रस्य॑ । रा॒यः । सु॒ऽवीर्य॑स्य । पत॑यः । स्या॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वन्वन्नवातो अभि देववीतिमिन्द्राय सोम वृत्रहा पवस्व । शग्धि महः पुरुश्चन्द्रस्य रायः सुवीर्यस्य पतयः स्याम ॥
स्वर रहित पद पाठवन्वन् । अवातः । अभि । देवऽवीतिम् । इन्द्राय । सोम । वृत्रऽहा । पवस्व । शग्धि । महः । पुरुऽचन्द्रस्य । रायः । सुऽवीर्यस्य । पतयः । स्याम ॥ ९.८९.७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 89; मन्त्र » 7
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 7
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 7
विषय - देववीति का साधक सोम
पदार्थ -
हे (सोम) = वीर्यशक्ते! (अवातः) = शरीर से बाहिर न प्रेरित हुआ हुआ और (वन्वन्) = सब रोगकृमियों का [To hurt, injure] संहार करता हुआ (देववीतिम् अभि) = दिव्यगुणों की प्राप्ति की ओर चलता हुआ (वृत्रहा) = सब वासनाओं का विनष्ट करनेवाला तू (इन्द्राय पवस्व) = इस जितेन्द्रिय पुरुष के लिये प्राप्त हो तू (महः) = महान् (पुरुश्चन्द्रस्य) = बहुतों के आह्लादक (रायः) = धन का (शग्धि) = हमारे लिये प्रदान कर । तेरे रक्षण के द्वारा हम ऐसे धन को प्राप्त करनेवाले बनें। इस जीवन में हम (सुवीर्यस्य) = उत्तम वीर्य के (पतयः) = रक्षक व स्वामी स्याम हों ।
भावार्थ - भावार्थ- सोम रक्षित होने पर हमें दिव्यगुणों को प्राप्त कराता है, उत्तम धन की प्राप्ति करानेवाला होता है और हमें शक्तिशाली बनाता है। दिव्यगुणों, उत्तम धनों व वीर्य को प्राप्त करके हम उत्तम जीवनवाले 'वसिष्ठ' बनते हैं । वसिष्ठ सोम का शंसन करते हुए कहते हैं-
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