ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 26/ मन्त्र 2
ऋषिः - इध्मवाहो दाळर्हच्युतः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
तं गावो॑ अ॒भ्य॑नूषत स॒हस्र॑धार॒मक्षि॑तम् । इन्दुं॑ ध॒र्तार॒मा दि॒वः ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । गावः॑ । अ॒भि । अ॒नू॒ष॒त॒ । स॒हस्र॑ऽधारम् । अक्षि॑तम् । इन्दु॑म् । ध॒र्तार॑म् । आ । दि॒वः ॥
स्वर रहित मन्त्र
तं गावो अभ्यनूषत सहस्रधारमक्षितम् । इन्दुं धर्तारमा दिवः ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । गावः । अभि । अनूषत । सहस्रऽधारम् । अक्षितम् । इन्दुम् । धर्तारम् । आ । दिवः ॥ ९.२६.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 26; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
विषय - अब उक्त स्वरूप के साक्षात्कार का अन्य प्रकार कथन करते हैं।
पदार्थ -
(गावः) “गच्छन्ति विषयान्निति गाव इन्द्रियाणि” इन्द्रियें (तम्) उस परमात्मा को (अभ्यनूषत) अपना विषय बनाती हैं, जो परमात्मा (सहस्रधारम्) अनेक वस्तुओं का धारण करनेवाला अच्युत (अक्षितम्) अच्युत (इन्दुम्) परमैश्वर्य्यसम्पन्न (दिवः आधर्तारम्) तथा द्युलोकपर्यन्त लोकों का धारण करनेवाला है ॥२॥
भावार्थ - जो परमात्मा द्युभ्वादि लोकों का आधार है और जिसमें अनन्त प्रकार की वस्तुएँ निवास करती हैं, वह शुद्ध इन्द्रियों द्वारा साक्षात्कार किया जाता है ॥२॥
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