ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 35/ मन्त्र 1
आ न॑: पवस्व॒ धार॑या॒ पव॑मान र॒यिं पृ॒थुम् । यया॒ ज्योति॑र्वि॒दासि॑ नः ॥
स्वर सहित पद पाठआ नः॒ । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । पव॑मान । र॒यिम् । पृ॒थुम् । यया॑ । ज्योतिः॑ । वि॒दासि॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ न: पवस्व धारया पवमान रयिं पृथुम् । यया ज्योतिर्विदासि नः ॥
स्वर रहित पद पाठआ नः । पवस्व । धारया । पवमान । रयिम् । पृथुम् । यया । ज्योतिः । विदासि । नः ॥ ९.३५.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 35; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
विषय - अब परमात्मा का धर्मादिदातृत्व के रूप में वर्णन करते हैं।
पदार्थ -
(पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (नः धारया आपवस्व) हमको आप आनन्द की धारा से भली प्रकार पवित्र करिये (रयिम् पृथुम्) और बड़े भारी ऐश्वर्य को दीजिये (यया नः ज्योतिः विदासि) उसी आनन्द की धारा से आप ज्ञानप्रद हैं ॥१॥
भावार्थ - जो पुरुष अपने आपको परमात्मज्ञान का पात्र बनाते हैं, परमात्मा उन्हें आनन्द की वृष्टि से सिञ्चित करते हैं ॥१॥
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