Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 39 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 39/ मन्त्र 1
    ऋषिः - बृहन्मतिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ॒शुर॑र्ष बृहन्मते॒ परि॑ प्रि॒येण॒ धाम्ना॑ । यत्र॑ दे॒वा इति॒ ब्रव॑न् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒शुः । अ॒र्ष॒ । बृ॒ह॒त्ऽम॒ते॒ । परि॑ । प्रि॒येण॑ । धाम्ना॑ । यत्र॑ । दे॒वाः । इति॑ । ब्रव॑न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आशुरर्ष बृहन्मते परि प्रियेण धाम्ना । यत्र देवा इति ब्रवन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आशुः । अर्ष । बृहत्ऽमते । परि । प्रियेण । धाम्ना । यत्र । देवाः । इति । ब्रवन् ॥ ९.३९.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 39; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 29; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (बृहन्मते) हे सर्वज्ञ परमात्मन् ! (आशुः) आप शीघ्र गतिशील हैं (यत्र देवाः इति ब्रवन्) जहाँ दिव्यगुणसम्पन्न ऋत्विगादि आपका आवाहन करते हैं, उस यज्ञस्थल में आप (प्रियेण धाम्ना पर्यर्ष) अपने सर्वहितकारक तेजस्वरूप से विराजमान हों ॥१॥

    भावार्थ - यज्ञादि शुभकर्मों में परमात्मा के भाव वर्णन किये जाते हैं, इसलिये परमात्मा की अभिव्यक्ति यज्ञादिस्थलों में मानी गई है। वास्तव में परमात्मा सर्वत्र परिपूर्ण है ॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top