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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 39/ मन्त्र 2
    ऋषिः - बृहन्मतिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    प॒रि॒ष्कृ॒ण्वन्ननि॑ष्कृतं॒ जना॑य या॒तय॒न्निष॑: । वृ॒ष्टिं दि॒वः परि॑ स्रव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प॒रि॒ऽकृ॒ण्वन् । अनिः॑ऽकृतम् । जना॑य । या॒तय॑न् । इषः॑ । वृ॒ष्टिम् । दि॒वः । परि॑ । स्र॒व॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परिष्कृण्वन्ननिष्कृतं जनाय यातयन्निष: । वृष्टिं दिवः परि स्रव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परिऽकृण्वन् । अनिःऽकृतम् । जनाय । यातयन् । इषः । वृष्टिम् । दिवः । परि । स्रव ॥ ९.३९.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 39; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 29; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (अनिष्कृतम् परिष्कृण्वन्) हे परमात्मन् ! आप अपने अज्ञानी उपासकों को ज्ञान देते हुए (जनाय इषः यातयन्) और अपने भक्तों को ऐश्वर्य प्राप्त कराते हुए (दिवः वृष्टिम् परिस्रव) द्युलोक से वृष्टि को उत्पन्न कीजिये ॥२॥

    भावार्थ - परमात्मा के संसार में अद्भुत कर्म ये हैं कि उसने द्युलोक को वर्षणशील बनाया है और सूर्यादि लोकों को तेजोमय तथा पृथिवीलोक को दृढ बनाया है इत्यादि विचित्र भावों का कर्ता एकमात्र परमात्मा ही है ॥२॥

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