ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 45/ मन्त्र 6
तया॑ पवस्व॒ धार॑या॒ यया॑ पी॒तो वि॒चक्ष॑से । इन्दो॑ स्तो॒त्रे सु॒वीर्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठतया॑ । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । यया॑ । पी॒तः । वि॒ऽचक्ष॑से । इन्दो॒ इति॑ । स्तो॒त्रे । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तया पवस्व धारया यया पीतो विचक्षसे । इन्दो स्तोत्रे सुवीर्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठतया । पवस्व । धारया । यया । पीतः । विऽचक्षसे । इन्दो इति । स्तोत्रे । सुऽवीर्यम् ॥ ९.४५.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 45; मन्त्र » 6
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 2; मन्त्र » 6
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 2; मन्त्र » 6
पदार्थ -
(इन्दो) हे परमात्मन् ! (यया पीतः) जिस ज्ञान की धारा से सेवन किये गये आप (विचक्षसे स्तोत्रे) अपने विद्वान् स्तोता के लिये (सुवीर्यम्) सुन्दर ज्ञान-कर्मशालिनी शक्ति को देते हैं (तया धारया पवस्व) उसी आनन्दोत्पादक ज्ञानधारा से आप मुझे पवित्र करिये ॥६॥
भावार्थ - परमात्मा अपनी ज्ञानरूप धारा से सबके अन्तःकरणों को सिञ्चित करता है। तात्पर्य यह है कि उसका ज्ञानरूप प्रकाश प्रत्येक पुरुष के हृदय में पड़ता है, परन्तु सुपात्र पुरुष ही पात्र बनकर उसका ग्रहण कर सकते हैं, अन्य नहीं ॥६॥ यह ४५ वाँ सूक्त और दूसरा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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