ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 51/ मन्त्र 5
अ॒भ्य॑र्ष विचक्षण प॒वित्रं॒ धार॑या सु॒तः । अ॒भि वाज॑मु॒त श्रव॑: ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । अ॒र्ष॒ । वि॒ऽच॒क्ष॒ण॒ । प॒वित्र॑म् । धार॑या । सु॒तः । अ॒भि । वाज॑म् । उ॒त । श्रवः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभ्यर्ष विचक्षण पवित्रं धारया सुतः । अभि वाजमुत श्रव: ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । अर्ष । विऽचक्षण । पवित्रम् । धारया । सुतः । अभि । वाजम् । उत । श्रवः ॥ ९.५१.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 51; मन्त्र » 5
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
पदार्थ -
(विचक्षण) हे सर्वज्ञ परमात्मन् ! (सुतः) ध्यानविषय किये गये आप (धारया पवित्रम् अभ्यर्ष) आनन्द की धारा से पवित्र हुए अन्तःकरण में निवास करिये और (वाजम्) अन्नादि ऐश्वर्य तथा (उत श्रवः) सुन्दर कीर्ति को (अभि) प्रदान करिये ॥५॥
भावार्थ - इस मन्त्र में परमात्मा से ऐश्वर्यप्राप्ति की प्रार्थना की गई है ॥५॥ बह ५१ वाँ सूक्त और ८ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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