ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 52/ मन्त्र 2
तव॑ प्र॒त्नेभि॒रध्व॑भि॒रव्यो॒ वारे॒ परि॑ प्रि॒यः । स॒हस्र॑धारो या॒त्तना॑ ॥
स्वर सहित पद पाठतव॑ । प्र॒त्नेभिः॑ । अध्व॑ऽभिः । अव्यः॑ । वारे॑ । परि॑ । प्रि॒यः । स॒हस्र॑ऽधारः । या॒त् । तना॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तव प्रत्नेभिरध्वभिरव्यो वारे परि प्रियः । सहस्रधारो यात्तना ॥
स्वर रहित पद पाठतव । प्रत्नेभिः । अध्वऽभिः । अव्यः । वारे । परि । प्रियः । सहस्रऽधारः । यात् । तना ॥ ९.५२.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 52; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
पदार्थ -
(तव प्रियः अव्यः) हे भगवन् ! आपका प्रिय रक्षणीय उपासक (प्रत्नेभिरध्वभिः) आपके प्राचीन वेदविहित मार्गों द्वारा (सहस्रधारः) आपकी अनेक प्रकार की धाराओं से युक्त होने से (तना) समृद्ध होकर (वारे परियात्) आपके प्रार्थनीय पद को प्राप्त हो ॥२॥
भावार्थ - इस मन्त्र में परमात्मा वेदमार्ग के आश्रयण का उपदेश करते हैं ॥२॥
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