ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 81/ मन्त्र 4
आ न॑: पू॒षा पव॑मानः सुरा॒तयो॑ मि॒त्रो ग॑च्छन्तु॒ वरु॑णः स॒जोष॑सः । बृह॒स्पति॑र्म॒रुतो॑ वा॒युर॒श्विना॒ त्वष्टा॑ सवि॒ता सु॒यमा॒ सर॑स्वती ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । पू॒षा । पव॑मानः । सु॒ऽरा॒तयः॑ । मि॒त्रः । ग॒च्छ॒न्तु॒ । वरु॑णः । स॒ऽजोष॑सः । बृह॒स्पतिः॑ । म॒रुतः॑ । वा॒युः । अ॒श्विना॑ । त्वष्टा॑ । स॒वि॒ता । सु॒ऽयमा॑ । सर॑स्वती ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ न: पूषा पवमानः सुरातयो मित्रो गच्छन्तु वरुणः सजोषसः । बृहस्पतिर्मरुतो वायुरश्विना त्वष्टा सविता सुयमा सरस्वती ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नः । पूषा । पवमानः । सुऽरातयः । मित्रः । गच्छन्तु । वरुणः । सऽजोषसः । बृहस्पतिः । मरुतः । वायुः । अश्विना । त्वष्टा । सविता । सुऽयमा । सरस्वती ॥ ९.८१.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 81; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
पदार्थ -
हे परमात्मन् ! (नः) हमको (पूषा) धर्म्मोपदेश द्वारा पुष्टि करनेवाला विद्वान् (पवमानः) पथ्यापथ्य बताकर पवित्र करनेवाला विद्वान् (सुरातयः) दानशील विद्वान् (मित्रः) सबसे मैत्री करनेवाला विद्वान् (वरुणः) सबका वशीभूत करनेवाला विद्वान् (बृहस्पतिः) वाणियों के पति (मरुतः) ज्ञानयोगी (वायुः) कर्म्मयोगी (अश्विना) कर्म्म और ज्ञानयोगी दोनों (त्वष्टा) कार्य्य करने में समर्थ विद्वान् (सविता) उत्तमोत्तम पदार्थों का निर्माता विद्वान् (सुयमा) सबको नियम में रखनेवाला विद्वान् (सरस्वती) ज्ञान को सर्वोपरि भूषणरूप से धारण करनेवाला विद्वान्, ये सब पूर्वोक्त विद्वान् (नः) हमको (आगच्छन्तु) प्राप्त हों ॥४॥
भावार्थ - परमात्मा उपदेश करता है, कि हे मनुष्यों ! तुम सामाजिक उन्नति के लिये पूर्वोक्त विद्वान् का संग्रह करो, ताकि तुम सब विद्याओं में निपुण होकर संसार में अभ्युदयशाली बनो ॥४॥
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