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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1078
ऋषिः - कश्यपो मारीचः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
र꣡सं꣢ ते मि꣣त्रो꣡ अ꣢र्य꣣मा꣡ पिब꣢꣯न्तु꣣ व꣡रु꣢णः कवे । प꣡व꣢मानस्य म꣣रु꣡तः꣢ ॥१०७८॥
स्वर सहित पद पाठर꣡स꣢꣯म् । ते꣣ । मित्रः꣢ । मि꣣ । त्रः꣢ । अ꣣र्यमा꣢ । पि꣡ब꣢꣯न्तु । व꣡रु꣢꣯णः । क꣣वे । प꣡व꣢꣯मानस्य । म꣣रु꣡तः꣢ ॥१०७८॥
स्वर रहित मन्त्र
रसं ते मित्रो अर्यमा पिबन्तु वरुणः कवे । पवमानस्य मरुतः ॥१०७८॥
स्वर रहित पद पाठ
रसम् । ते । मित्रः । मि । त्रः । अर्यमा । पिबन्तु । वरुणः । कवे । पवमानस्य । मरुतः ॥१०७८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1078
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - रस-पान
पदार्थ -
हे (कवे) = क्रान्तदर्शिन्- सब विद्याओं का उपदेश देनेवाले प्रभो ! [कौति सर्वा विद्याः] (पवमानस्य) = सबके जीवनों को पवित्र करनेवाले (ते) = आपके (रसम्) = दर्शन से होनेवाले अवर्णनीय आनन्द का (पिबन्तु) = पान करते हैं । कौन ? १. (मित्र:) = सबके साथ स्नेह करनेवाले व्यक्ति। अपने को रोगों व पापों से बचानेवाले व्यक्ति [प्रमीते: त्रायते] । २. (अर्यमा) = काम-क्रोध-लोभादि शत्रुओं का नियमन करनेवाले [अरीन् नियच्छति] तथा दान देनेवाले [अर्यमेति तमाहुः यो ददाति] । ३. (वरुणः) = अपने जीवन को व्रतों के बन्धन में बाँधकर [पाशी] प्रकृष्ट ज्ञानी बनते हुए [प्रचेता] जो अपने जीवनों को श्रेष्ठ बनाते हैं। [वरुणो नाम वरः श्रेष्ठः ] । ४. (मरुतः) = प्राणापान की साधना करनेवाले ।
भावार्थ -
हम मित्र, अर्यमा, वरुण व मरुत् बनकर प्रभु-दर्शन के रस का पान करें।
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