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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1094
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
1

त्वं꣢꣫ विप्र꣣स्त्वं꣢ क꣣वि꣢꣫र्मधु꣣ प्र꣢ जा꣣त꣡मन्ध꣢꣯सः । म꣡दे꣢षु सर्व꣣धा꣡ अ꣢सि ॥१०९४॥

स्वर सहित पद पाठ

त्व꣢म् । वि꣡प्रः꣢꣯ । वि । प्रः꣣ । त्व꣢म् । क꣣विः꣢ । म꣡धु꣢꣯ । प्र । जा꣣त꣢म् । अ꣡न्ध꣢꣯सः । म꣡दे꣢꣯षु । स꣣र्वधाः꣢ । स꣣र्व । धाः꣢ । अ꣣सि ॥१०९४॥


स्वर रहित मन्त्र

त्वं विप्रस्त्वं कविर्मधु प्र जातमन्धसः । मदेषु सर्वधा असि ॥१०९४॥


स्वर रहित पद पाठ

त्वम् । विप्रः । वि । प्रः । त्वम् । कविः । मधु । प्र । जातम् । अन्धसः । मदेषु । सर्वधाः । सर्व । धाः । असि ॥१०९४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1094
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

१. (सोम) = वीर्य के संरक्षण से हमारे जीवन की सब कमियाँ दूर हो जाती हैं, मन्त्र में कहा है कि हे सोम! (त्वम्) = तू (विप्रः) = [वि+प्र] विशेषरूप से हमारा पूरण करनेवाला है। सब रोगकृमियों के संहार से रोगबीजों को तू शरीर से दूर कर देता है - हमारा शरीर पूर्ण स्वस्थ हो जाता है। २. सोम ही सुरक्षित होकर ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है और हमें सूक्ष्मदृष्टि बनाता है । हे सोम ! (त्वम्) = तू (कविः) = क्रान्तदर्शी है हमें सूक्ष्मदृष्टि [Piercing sight] बनानेवाला है । ३. सोम से सबल बनकर हम ईर्ष्या-द्वेष से भी ऊपर उठ जाते हैं, इसीलिए (अन्धसः) = इस आध्यायनीय [अत्यन्त ध्यान से रक्षित करने योग्य] सोम से हमारा जीवन (मधु) = मीठा-ही-मीठा (प्रजातम्) = हो गया है। (‘भूयासं मधु सन्दृशः') = हमारी यह प्रार्थना सोम-संरक्षण से ही कार्यान्वित हो पायी है । ४. हे सोम ! तू हमारे जीवनों में मद को जन्म देता है, परन्तु उस हर्षोल्लास में हम धारणात्मक कार्य ही करते हैं, तोड़फोड़ में नहीं लग जाते ! हे सोम! तू (मदेषु) = हर्षोल्लास में (सर्वधाः असि) = सबका धारण करनेवाला है। सोम का मद हमें बेहोश न करके अधिक चैतन्य प्राप्त करानेवाला है और अपने स्वरूप की ठीक स्मृति के कारण हम धारणात्मक कार्यों में ही प्रवृत्त होते हैं— तोड़-फोड़ में नहीं लगे रहते। 

भावार्थ -

सोम-संरक्षण से १. न्यूनताएँ दूर होती हैं, २. बुद्धि सूक्ष्म बनती है, ३. मन मधुर हो जाता है, ४. और हम सदा प्रसन्नचित्त होकर धारणात्मक कार्यों में लगे रहते हैं ।

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