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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1099
ऋषिः - पर्वतनारदौ काण्वौ देवता - पवमानः सोमः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
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सं꣢ व꣣त्स꣡ इ꣢व मा꣣तृ꣢भि꣣रि꣡न्दु꣢र्हिन्वा꣣नो꣡ अ꣢ज्यते । दे꣣वावी꣡र्मदो꣢꣯ म꣣ति꣢भिः꣣ प꣡रि꣢ष्कृतः ॥१०९९॥

स्वर सहित पद पाठ

सम् । व꣣त्सः꣢ । इ꣣व । मातृ꣡भिः꣢ । इ꣡न्दुः꣢꣯ । हि꣣न्वानः꣢ । अ꣣ज्यते । देवावीः꣢ । दे꣣व । अवीः꣢ । म꣡दः꣢꣯ । म꣣ति꣡भिः꣢ । प꣡रि꣢꣯ष्कृतः । प꣡रि꣢꣯ । कृ꣣तः ॥१०९९॥


स्वर रहित मन्त्र

सं वत्स इव मातृभिरिन्दुर्हिन्वानो अज्यते । देवावीर्मदो मतिभिः परिष्कृतः ॥१०९९॥


स्वर रहित पद पाठ

सम् । वत्सः । इव । मातृभिः । इन्दुः । हिन्वानः । अज्यते । देवावीः । देव । अवीः । मदः । मतिभिः । परिष्कृतः । परि । कृतः ॥१०९९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1099
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

१. (इव) = जिस प्रकार (वत्सः) = माता-पिता का आज्ञानुवर्ती, अतएव प्रिय सन्तान (मातृभिः) = माताओं के द्वारा [माता-पिता व आचार्य तीनों बालक के जीवन के निर्माता हैं] (समज्यते) - सद्गुणों से अलंकृत किया जाता है, इसी प्रकार (इन्दुः) = सोम की रक्षा करनेवाला प्रभु का उपासक (हिन्वानः) = अन्तः स्थित प्रभु से प्रेरणा दिया जाता हुआ (समज्यते) = ज्ञानादि ऐश्वर्यों से सुभूषित किया जाता है। २. (देवावी:) = यह अपने जीवन में दिव्य गुणों की रक्षा करनेवाला होता है । ३. (मदः) = सदा उल्लासमय जीवनवाला होता है । ४. (मतिभिः) = मनन के द्वारा, सदा विचार व चिन्तन के द्वारा यह (परिष्कृत:) = परिष्कृत जीवनवाला होता है ।

मनन व चिन्तन के द्वारा अपना पूरण करनेवाला यह 'पर्वत' बनता है । यह अपने हित के लिए प्राप्त प्रत्येक अङ्ग-प्रत्यङ्ग को पवित्र करने के कारण 'नार-द' कहलाता है [नर हित के लिए दी गयी वस्तुएँ ‘नार' कहलाती हैं]।

भावार्थ -

उपासक प्रभु के द्वारा सद्गुणों से अलंकृत किया जाता है|

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