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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1100
ऋषिः - पर्वतनारदौ काण्वौ
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम -
4
अ꣣यं꣡ दक्षा꣢꣯य꣣ सा꣡ध꣢नो꣣ऽय꣡ꣳ शर्धा꣢꣯य वी꣣त꣡ये꣢ । अ꣣यं꣢ दे꣣वे꣢भ्यो꣣ म꣡धु꣢मत्तरः सु꣣तः꣢ ॥११००॥
स्वर सहित पद पाठअय꣢म् । द꣡क्षा꣢꣯य । सा꣡ध꣢꣯नः । अ꣡य꣢म् । श꣡र्धा꣢꣯य । वी꣣त꣡ये꣢ । अ꣣य꣢म् । दे꣣वे꣡भ्यः꣢ । म꣡धु꣢꣯मत्तरः । सु꣣तः꣢ ॥११००॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं दक्षाय साधनोऽयꣳ शर्धाय वीतये । अयं देवेभ्यो मधुमत्तरः सुतः ॥११००॥
स्वर रहित पद पाठ
अयम् । दक्षाय । साधनः । अयम् । शर्धाय । वीतये । अयम् । देवेभ्यः । मधुमत्तरः । सुतः ॥११००॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1100
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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विषय - प्रभु का सच्चा पुत्र
पदार्थ -
१. (अयम्) = यह प्रभु-भक्त (दक्षाय) = उन्नति के लिए (साधनः) = जानेवाला होता है। [साधयतिः गतिकर्मा], अर्थात् दिन-प्रतिदिन उन्नति-पथ पर बढ़ता चलता है । २. (अयम्) = यह (शर्धाय) = शक्ति के लिए (साधन:) = जानेवाला होता है, अर्थात् इसकी शक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है । ३. (अयम्) = यह (वीतये) = अन्धकार के नाश व प्रकाश के लिए (साधनः) = जानेवाला होता है। प्रभुभक्त अज्ञानान्धकार से ऊपर उठकर ज्ञान के प्रकाश में पहुँच जाता है । ४. (अयम्) = यह (देवेभ्यः) = दिव्य गुणों के विकास के लिए होता है, अर्थात् उसमें दिव्यता बढ़ती जाती है । ५. (मधुमत्तरः) = अत्यन्त माधुर्यवाला यह (सुतः) = [सुतम् अस्यास्ति इति] ऐश्वर्यवाला होता है अथवा (सुतः) = यह प्रभु का सच्चा पुत्र होता है ।
भावार्थ -
प्रभु का सच्चा पुत्र वह है जो- १. उन्नति को सिद्ध करता है, २. शक्ति को बढ़ाता है, ३. अन्धकार को दूर कर प्रकाश को प्राप्त करता है, ४. दिव्य गुणों का विकास करता है, अत्यन्त माधुर्यमय जीवनवाला होता है ।
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