Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1112
ऋषिः - भुवन आप्त्यः साधनो वा भौवनः
देवता - विश्वे देवाः
छन्दः - द्विपदा त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम -
4
आ꣣दित्यै꣢꣫रिन्द्रः꣣ स꣡ग꣢णो म꣣रु꣡द्भि꣢र꣣स्म꣡भ्यं꣢ भेष꣣जा꣡ क꣢रत् ॥१११२॥
स्वर सहित पद पाठआ꣣दित्यैः꣢ । आ꣣ । दित्यैः꣢ । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । स꣡ग꣢꣯णः । स । ग꣣णः । मरु꣡द्भिः꣢ । अ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । भे꣣षजा꣢ । क꣣रत् ॥१११२॥
स्वर रहित मन्त्र
आदित्यैरिन्द्रः सगणो मरुद्भिरस्मभ्यं भेषजा करत् ॥१११२॥
स्वर रहित पद पाठ
आदित्यैः । आ । दित्यैः । इन्द्रः । सगणः । स । गणः । मरुद्भिः । अस्मभ्यम् । भेषजा । करत् ॥१११२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1112
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 23; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 7; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 23; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 7; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
Acknowledgment
विषय - आधि-व्याधि से दूर
पदार्थ -
वह (इन्द्रः) = परमैश्वर्यवाला परमात्मा (सगण:) = पञ्चविंशति [२५] संख्याक गण के साथ [सारा संसार २५ पदार्थों में विभक्त हुआ है], (आदित्यैः) = सब गुणों का आदान करनेवाले विद्वानों के द्वारा तथा (मरुद्भिः) = प्राणों के द्वारा (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (भेषजा करत्) = औषधों को करे ।
प्रकृति से महत्, महत् से अहंकार, अहंकार से पञ्चतन्मात्राएँ, १० इन्द्रियाँ व मन, तथा पञ्चतनमात्राओं से पञ्च स्थूलभूत तथा पुरुष [जीव] इस प्रकार सम्पूर्ण चराचर संसार पच्चीस गणों में विभक्त है। प्रभु ही इसके संचालक हैं। वे प्रभु इस पच्चीस के गण के साथ हमारा कल्याण करें।
हममें जो भी वासनारूप अध्यात्मरोग उत्पन्न हो जाए उनका औषध तो वे प्रभु आदित्य विद्वानों के सम्पर्क द्वारा करें तथा जो भी शरीर-रोग उत्पन्न हों उन्हें प्राणों द्वारा [मरुतों के द्वारा] दूर करें । आदित्यों का सम्पर्क हमें दुर्गुणों से बचाएगा तथा प्राणों की साधना हमें रोगों से बचाएगी। इस प्रकार हमारा शरीर व मन दोनों ही स्वस्थ होंगे- हम आधि-व्याधिशून्य सुन्दर जीवन बिता पाएँगे।
भावार्थ -
हम आदित्यों व मरुतों द्वारा आधि-व्याधि से ऊपर उठ जाएँ।
इस भाष्य को एडिट करें