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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1128
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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अ꣡सृ꣢ग्र꣣मि꣡न्द꣢वः प꣣था꣡ धर्म꣢꣯न्नृ꣣त꣡स्य꣢ सु꣣श्रि꣡यः꣢ । वि꣣दाना꣡ अ꣢स्य꣣ यो꣡ज꣢ना ॥११२८॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡सृ꣢꣯ग्रम् । इ꣡न्द꣢꣯वः । प꣣था꣢ । ध꣡र्म꣢꣯न् । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । सु꣣श्रि꣡यः꣢ । सु꣣ । श्रि꣡यः꣢꣯ । वि꣣दानाः꣢ । अ꣣स्य । यो꣡ज꣢꣯ना ॥११२८॥


स्वर रहित मन्त्र

असृग्रमिन्दवः पथा धर्मन्नृतस्य सुश्रियः । विदाना अस्य योजना ॥११२८॥


स्वर रहित पद पाठ

असृग्रम् । इन्दवः । पथा । धर्मन् । ऋतस्य । सुश्रियः । सु । श्रियः । विदानाः । अस्य । योजना ॥११२८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1128
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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पदार्थ -

(इन्दवः) = इन्दु = सोम [इन्द् to be powerful] सोम का, शक्ति का शरीर में ही व्यापन करके शक्तिशाली बननेवाले (सुश्रियः) = उत्तम श्रीसम्पन्न व्यक्ति (अस्य) = इस प्रभु की (योजना) = योजनाओं को (विदाना:) = जानते हुए (ऋतस्य पथा) = ऋत के, सत्य के मार्ग से (धर्मन्) = [धर्माणि] धर्म-कर्मों को असृग्रम्=करते हैं [सृजन्ति]।

१. ऋत के मार्ग से चलना चाहिए। असत् को छोड़कर सत् को अपनाना चाहिए । ऋत के मार्ग से चलते हुए सदा सत्कर्मों को ही करना चाहिए । २. सत्कर्मों में प्रवृत्ति के लिए तीन बातें आवश्यक हैं—[क] सोम का पान करके शक्तिशाली बनना, [ख] उत्तम श्रीयुक्त – धन-सम्पन्न होना, [ग] प्रभु की योजनाओं को समझना । जितना - जितना हम इन योजनाओं को समझेंगे उतना उतना ही कर्मों को ठीक प्रकार से करनेवाले होंगे। इस प्रकार संक्षेप से सत्कर्मों में प्रवृत्ति के लिए 'शक्ति, धन व ज्ञान' तीनों आवश्यक हैं ।

भावार्थ -

‘शक्ति, धन व ज्ञान' से युक्त होकर हम ऋत के मार्ग से धर्म-कर्मों को करनेवाले बनें ।

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