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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1130
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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प्र꣢ यु꣣जा꣢ वा꣣चो꣡ अ꣢ग्रि꣣यो꣡ वृषो꣢꣯ अचिक्रद꣣द्व꣡ने꣢ । स꣢द्मा꣣भि꣢ स꣣त्यो꣡ अ꣢ध्व꣣रः꣢ ॥११३०॥

स्वर सहित पद पाठ

प्र । यु꣣जा꣢ । वा꣣चः꣢ । अ꣣ग्रियः꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । उ꣣ । अचिक्रदत् । व꣡ने꣢꣯ । स꣡द्म꣢꣯ । अ꣣भि꣢ । स꣣त्यः꣢ । अ꣣ध्व꣢रः ॥११३०॥


स्वर रहित मन्त्र

प्र युजा वाचो अग्रियो वृषो अचिक्रदद्वने । सद्माभि सत्यो अध्वरः ॥११३०॥


स्वर रहित पद पाठ

प्र । युजा । वाचः । अग्रियः । वृषा । उ । अचिक्रदत् । वने । सद्म । अभि । सत्यः । अध्वरः ॥११३०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1130
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

१. (अग्रियः) = सत्त्वगुण में अवस्थित, २. (वृषः) = सदा धर्म के कर्मों में लगा हुआ, ३. (अध्वरः) = हिंसारहित यज्ञिय मनोवृत्तिवाला पुरुष, (सत्यः) = सत्याचरण करनेवाला ४. (युजा) = निरुद्ध चित्तवृत्ति को प्रभु में लगाने के द्वारा, ५, (वने) = उस उपासनीय प्रभु के स्तवन में [सम्भजन में] (वाच:) = स्तुतिवचनों को (प्र अचिक्रदत्) = खूब ही उच्चारण करता है और इसी का परिणाम होता है कि ६. (सद्म अभि) = वह अपने घर की ओर बढ़ता चलता है । हमारा वास्तविक घर तो ब्रह्मलोक ही है। हम वहाँ से भटककर इस मर्त्यलोक में विचर रहे

हैं । उस घर की ओर जाने के लिए हमें कुछ पग उठाने होंगे। प्रस्तुत मन्त्र में उन्हीं पगों का वर्णन है १. तमोगुण में रहते हुए तो नाममात्र भी आगे बढ़ना सम्भव नहीं, वहाँ तो प्रमाद, आलस्य व निद्रा का प्राबल्य है । रजोगुण से हम इस संसार में और अधिक आसक्त हो जाते हैं । सत्त्वगुण ही हमें अपने घर की ओर ले चलता है । २. सात्त्विक पुरुष अधर्म को छोड़कर धर्म को अपनाता है अर्धम बोझल है, वह हमें ऊपर न उठने देगा। ३. धर्म का सर्वोत्तम रूप सत्य ही है, इसी से तो हम सत्य-ब्रह्म को अपना पाएँगे । ४. इस ब्रह्म की प्राप्ति के लिए सत्य को अपनाता हुआ यह व्यक्ति भूतहित में प्रवृत्त होता है, ५. इस वृत्तिवाला पुरुष मनोनिरोध के द्वारा, ६. प्रभु की ओर चलता है |

भावार्थ -

हम सत्त्वगुण में अवस्थित होकर प्रभु की ओर चलें ।

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