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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1131
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
प꣢रि꣣ य꣡त्काव्या꣢꣯ क꣣वि꣢र्नृ꣣म्णा꣡ पु꣢ना꣣नो꣡ अर्ष꣢꣯ति । स्व꣢꣯र्वा꣣जी꣡ सि꣢षासति ॥११३१॥
स्वर सहित पद पाठप꣡रि꣢꣯ । यत् । का꣡व्या꣢꣯ । क꣣विः꣢ । नृ꣣म्णा꣢ । पु꣣नानः꣢ । अ꣡र्ष꣢꣯ति । स्वः꣢ । वा꣣जी꣢ । सि꣣षासति ॥११३१॥
स्वर रहित मन्त्र
परि यत्काव्या कविर्नृम्णा पुनानो अर्षति । स्वर्वाजी सिषासति ॥११३१॥
स्वर रहित पद पाठ
परि । यत् । काव्या । कविः । नृम्णा । पुनानः । अर्षति । स्वः । वाजी । सिषासति ॥११३१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1131
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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विषय - मोक्ष का मार्ग
पदार्थ -
(यत्) = जब यह ‘असित् काश्यप, देवल' प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि १. (कवि:) = क्रान्तदर्शी बनता है । सब वस्तुओं के तत्त्व को समझने का प्रयत्न करता है, २. (नृम्णा) = धनों को (पुनानः) = पवित्र करता है । प्रत्येक बात को तात्त्विक दृष्टि से सोचनेवाला व्यक्ति अपवित्र साधनों से धन कमाएगा ही नहीं । ३. यह (काव्या) = वेदज्ञानों को (परि अर्षति) = पूर्णरूप से प्राप्त होता है । तात्त्विक दृष्टिवाला व्यक्ति ज्ञानप्रधान जीवन बिताता ही है । ४. ज्ञान-प्रधान जीवन बिताता हुआ यह (वाजी) = शक्तिशाली व क्रियाशील बनता है [वाज=शक्ति, वज गतौ] ।५. यह व्यक्ति वस्तुतः (स्वः) = अपने मोक्षसुख को भी (सिषासति) = बाँटना चाहता है। स्वयं अकेला मुक्त भी नहीं होना चाहता।
भावार्थ -
मुक्ति का मार्ग यही है कि मनुष्य – १. कवि-क्रान्तदर्शी बने, २. पवित्र धनवाला हो, ३. वेदज्ञान को प्राप्त करे, ४. शक्तिशाली व क्रियाशील हो, ५. सभी को सुख प्राप्त कराना चाहे ।