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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1163
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
ये꣡ सोमा꣢꣯सः परा꣣व꣢ति꣣ ये꣡ अ꣢र्वा꣣व꣡ति꣢ सुन्वि꣣रे꣢ । ये꣢ वा꣣दः꣡ श꣢र्य꣣णा꣡व꣢ति ॥११६३॥
स्वर सहित पद पाठये꣢ । सो꣡मा꣢꣯सः । प꣣राव꣡ति꣢ । ये । अ꣣र्वाव꣡ति꣢ । सु꣣न्विरे꣢ । ये । वा꣣ । अदः꣢ । श꣣र्यणा꣡व꣢ति ॥११६३॥
स्वर रहित मन्त्र
ये सोमासः परावति ये अर्वावति सुन्विरे । ये वादः शर्यणावति ॥११६३॥
स्वर रहित पद पाठ
ये । सोमासः । परावति । ये । अर्वावति । सुन्विरे । ये । वा । अदः । शर्यणावति ॥११६३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1163
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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विषय - मस्तिष्क, शरीर, हृदय
पदार्थ -
इन मन्त्रों में ‘परावति' आदि शब्दों में‘ निमित्त सप्तमी' है । (परावति) = दूरदेश, अर्थात् द्युलोकमस्तिष्क के निमित्त, [मूर्ध्ना द्यौः] (ये सोमासः) = जो सोम (सुन्विरे) = उत्पन्न किये जाते हैं, (ये) = जो सोम (अर्वावति) = समीप देश के निमित्त, अर्थात् इस बाह्य स्थूलशरीर के निमित्त उत्पन्न किये जाते हैं (वा) = अथवा (ये) = जो सोम (अदः शर्यणावति) = इस 'अन्तरिक्ष देश में होनेवाले' [ऋ० १.८४.१४ ५० ] हृदय के निमित्त पैदा किये गये हैं, वे हमारा सर्वविध रक्षण करें । हृदय में देवासुर संग्राम चलता है। यही शरीर में कुरुक्षेत्र भूमि है।
एवं, सोम मस्तिष्क के निमित्त, स्थूलशरीर के निमित्त तथा हृदय के निमित्त उत्पन्न किया गया है। सोम की रक्षा से मस्तिष्क उज्ज्वल बनेगा, शरीर स्वस्थ व नीरोग रहेगा और हृदय अशुभ वृत्तियों के पराजय से पवित्र बनेगा ।
भावार्थ -
प्रभु ने सोम की उत्पत्ति [वीर्यधातु का निर्माण] मस्तिष्क में ज्ञानाग्नि को दीप्त करने के लिए की है – शरीर में रोगकृमियों के संहार तथा मन में काम-क्रोधादि वासनाओं के अभिभव के लिए की है ।
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