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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1168
ऋषिः - वत्सः काण्वः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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स꣣म꣢त्स्व꣣ग्नि꣡मव꣢꣯से वाज꣣य꣡न्तो꣢ हवामहे । वा꣡जे꣣षु चि꣣त्र꣢रा꣣धसम् ॥११६८॥

स्वर सहित पद पाठ

स꣣म꣡त्सु꣢ । स꣣ । म꣡त्सु꣢꣯ । अ꣣ग्नि꣢म् । अ꣡व꣢꣯से । वा꣣ज꣡यन्तः꣢ । ह꣣वामहे । वा꣡जे꣢꣯षु । चि꣣त्र꣡रा꣢धसम् । चि꣣त्र꣢ । रा꣣धसम् ॥११६८॥


स्वर रहित मन्त्र

समत्स्वग्निमवसे वाजयन्तो हवामहे । वाजेषु चित्रराधसम् ॥११६८॥


स्वर रहित पद पाठ

समत्सु । स । मत्सु । अग्निम् । अवसे । वाजयन्तः । हवामहे । वाजेषु । चित्रराधसम् । चित्र । राधसम् ॥११६८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1168
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

(वाजेषु) = सब प्रकार के धनों में, बलों में व संग्रामों में (चित्रराधसम्) = अद्भुत सफलताओंवाले (अग्निम्) = सबके नेता आपको (अवसे) = अपनी रक्षा के लिए (वाजयन्तः) = शक्ति, धन व संग्राम विजय चाहते हुए (समत्सु) = सब संग्रामों में [समत्सु इति संग्रामनाम – नि० २.१७] (हवामहे) = पुकारते हैं। यह संसार एक संघर्ष है। उस संघर्ष में विजय प्राप्त करके ही मनुष्य आगे बढ़ पाता है । अकेला मनुष्य इस संघर्ष में विजय के लिए अपने को असमर्थ पाता है। प्रभु का स्मरण व प्रभु का सम्पर्क उसे शक्तिसम्पन्न बना देता है और वह अद्भुत उत्साहवाला बनकर संग्राम में विजय पाता है । विजय पाकर ही तो वह आगे बढ़ेगा। 

भावार्थ -

संसार-संग्राम में प्रभु का स्मरण करें और विजय प्राप्त करें ।

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