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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1168
    ऋषिः - वत्सः काण्वः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    13

    स꣣म꣢त्स्व꣣ग्नि꣡मव꣢꣯से वाज꣣य꣡न्तो꣢ हवामहे । वा꣡जे꣣षु चि꣣त्र꣢रा꣣धसम् ॥११६८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स꣣म꣡त्सु꣢ । स꣣ । म꣡त्सु꣢꣯ । अ꣣ग्नि꣢म् । अ꣡व꣢꣯से । वा꣣ज꣡यन्तः꣢ । ह꣣वामहे । वा꣡जे꣢꣯षु । चि꣣त्र꣡रा꣢धसम् । चि꣣त्र꣢ । रा꣣धसम् ॥११६८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समत्स्वग्निमवसे वाजयन्तो हवामहे । वाजेषु चित्रराधसम् ॥११६८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    समत्सु । स । मत्सु । अग्निम् । अवसे । वाजयन्तः । हवामहे । वाजेषु । चित्रराधसम् । चित्र । राधसम् ॥११६८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1168
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में फिर परमात्मा का आह्वान है।

    पदार्थ

    (समत्सु) देवासुरसंग्रामों में (वाजयन्तः) बल की कामना करते हुए, हम (अवसे) रक्षा के लिए (अग्निम्) अग्रनायक जगदीश्वर को (हवामहे) पुकारते हैं। (चित्रराधसम्) अद्भुत धनवाले उसे (वाजेषु) धनप्राप्ति के निमित्त (हवामहे) हम पुकारते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    परमेश्वर बल देकर ही लोगों की रक्षा करता है। अद्भुत दिव्य एवं भौतिक धनों का स्वामी वह पुरुषार्थियों को ही धन देता है ॥३॥

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    पदार्थ

    (समत्सु) सम्यक् हर्ष आनन्द प्रसङ्गों के निमित्त (अवसे) तृप्ति के लिये*106 तथा (वाजेषु चित्रराधसम्) संग्रामों आन्तरिक संग्रामों के निमित्त अद्भुत सिद्धिप्रद (अग्निं हवामहे) तुझ अग्रणी को आमन्त्रित करते हैं॥३॥

    टिप्पणी

    [*106. “अव रक्षण गति कान्ति प्रीति तृप्ति...” [भ्वादि॰]।]

    विशेष

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    विषय

    प्रभु के साथ सम्पर्क

    पदार्थ

    (वाजेषु) = सब प्रकार के धनों में, बलों में व संग्रामों में (चित्रराधसम्) = अद्भुत सफलताओंवाले (अग्निम्) = सबके नेता आपको (अवसे) = अपनी रक्षा के लिए (वाजयन्तः) = शक्ति, धन व संग्राम विजय चाहते हुए (समत्सु) = सब संग्रामों में [समत्सु इति संग्रामनाम – नि० २.१७] (हवामहे) = पुकारते हैं। यह संसार एक संघर्ष है। उस संघर्ष में विजय प्राप्त करके ही मनुष्य आगे बढ़ पाता है । अकेला मनुष्य इस संघर्ष में विजय के लिए अपने को असमर्थ पाता है। प्रभु का स्मरण व प्रभु का सम्पर्क उसे शक्तिसम्पन्न बना देता है और वह अद्भुत उत्साहवाला बनकर संग्राम में विजय पाता है । विजय पाकर ही तो वह आगे बढ़ेगा। 

    भावार्थ

    संसार-संग्राम में प्रभु का स्मरण करें और विजय प्राप्त करें ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हम (समत्सु) एकत्र आनन्द उत्सवों, यज्ञों और संग्रामों के अवसरों में (वाजेषु) ज्ञान, बल और अन्नादि के प्राप्ति, उत्पत्ति और वृद्धि के कार्यों में (वाजयन्तः) ज्ञानों और ऐश्वर्यों की कामना करते हुए या बल प्राप्त करते हुए हम (अवसे) अपनी रक्षा के लिये (अग्निम्) आगे के नेता-स्वरूप, आचार्य, परमगुरु परमात्मा का ही (हवामहे) स्मरण करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ वृषगणो वासिष्ठः। २ असितः काश्यपो देवलो वा। ११ भृगुर्वारुणिर्जमदग्निः। ८ भरद्वाजो बार्हस्पत्यः। ४ यजत आत्रेयः। ५ मधुच्छन्दो वैश्वामित्रः। ७ सिकता निवावरी। ८ पुरुहन्मा। ९ पर्वतानारदौ शिखण्डिन्यौ काश्यप्यावप्सरसौ। १० अग्नयो धिष्ण्याः। २२ वत्सः काण्वः। नृमेधः। १४ अत्रिः॥ देवता—१, २, ७, ९, १० पवमानः सोमः। ४ मित्रावरुणौ। ५, ८, १३, १४ इन्द्रः। ६ इन्द्राग्नी। १२ अग्निः॥ छन्द:—१, ३ त्रिष्टुप्। २, ४, ५, ६, ११, १२ गायत्री। ७ जगती। ८ प्रागाथः। ९ उष्णिक्। १० द्विपदा विराट्। १३ ककुप्, पुर उष्णिक्। १४ अनुष्टुप्। स्वरः—१-३ धैवतः। २, ४, ५, ६, १२ षड्ज:। ७ निषादः। १० मध्यमः। ११ ऋषभः। १४ गान्धारः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनः परमात्मानमाह्वयति।

    पदार्थः

    (समत्सु) देवासुरसंग्रामेषु (वाजयन्तः) बलं कामयमानाः वयम् (अवसे) रक्षणाय (अग्निम्) अग्रनायकं जगदीश्वरम् (हवामहे) आह्वयामः। (चित्रराधसम्) अद्भुतधनं तम् (वाजेषु) धनेषु निमित्तेषु (हवामहे) आह्वयामः ॥३॥

    भावार्थः

    परमेश्वरो बलं प्रदायैव जनान् रक्षति। अद्भुतानां दिव्यानां भौतिकानां च धनानां स्वामी स पुरुषार्थिभ्य एव धनानि ददाति ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।११।९।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    In our fight against moral weaknesses, for the acquisition and enhancement of knowledge, strength and food-stuffs, longing for wisdom and prosperity, we invoke for our protection, God, the Giver of wondrous gifts.

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    Meaning

    We, seekers of strength and fighters for victory, invoke and adore Agni, omnipotent power of wondrous munificence and achievement, for protection, defence and advancement in our struggles and contests of life. (Rg. 8-11-9)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (समत्सु) સમ્યક્ હર્ષ આનંદ પ્રસંગોને માટે (अवसे) તૃપ્તિને માટે (वाजेषु चित्राराधसम्) સંગ્રામો આન્તરિક સંગ્રામોના માટે અદ્ભુત સિદ્ધિપ્રદ (अग्निं हवामहे) તને-અગ્રણીને આમંત્રિત કરીએ છીએ. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर सामर्थ्य देऊनच लोकांचे रक्षण करतो. अद्भुत दिव्य व भौतिक धनांचा स्वामी असलेला परमेश्वर पुरुषार्थीनाच धन देतो. ॥३॥

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