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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1203
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
आ꣡ प꣢वमान धारया र꣣यि꣢ꣳ स꣣ह꣡स्र꣢वर्चसम् । अ꣣स्मे꣡ इ꣢न्दो स्वा꣣भु꣡व꣢म् ॥१२०३॥
स्वर सहित पद पाठआ । प꣣वमान । धारय । र꣢यिम् । स꣣ह꣡स्र꣢वर्चसम् । स꣣ह꣡स्र꣢ । व꣣र्च꣡सम् । अस्मे꣡इति꣢ । इ꣣न्दो । स्वाभु꣡व꣢म् । सु꣣ । आभु꣡व꣢म् ॥१२०३॥
स्वर रहित मन्त्र
आ पवमान धारया रयिꣳ सहस्रवर्चसम् । अस्मे इन्दो स्वाभुवम् ॥१२०३॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । पवमान । धारय । रयिम् । सहस्रवर्चसम् । सहस्र । वर्चसम् । अस्मेइति । इन्दो । स्वाभुवम् । सु । आभुवम् ॥१२०३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1203
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 8
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 8
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
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विषय - आत्मज्ञान व अभय
पदार्थ -
हे (पवमान) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले (इन्दो) = परमैश्वर्य-सम्पन्न प्रभो! आप (अस्मे) = हममें (स्वाभुवम्) = [स्व=आत्मा भू-होना] आत्मा में होनेवाले, अर्थात् आत्मविषयक (सहस्रवर्चसम्) = आत्मज्ञान के द्वारा अनन्त शक्ति देनेवाले (रयिम्) = ज्ञान-धन को (आधारय) = सर्वथा धारण कराइए । आपकी कृपा से हम आत्मज्ञान प्राप्त करें, और अपनी महिमा का अनुभव करें। आत्मज्ञान हमें निर्भीक व शक्ति-सम्पन्न बनाता है । आत्मज्ञान प्राप्त करके मनुष्य मृत्यु आदि के भय से ऊपर उठ जाता है|
भावार्थ -
हम आत्मज्ञान प्राप्त करके अभय बन जाएँ।
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