Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1223
ऋषिः - सुकक्ष आङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
इ꣢न्द्रः꣣ स꣡ दाम꣢꣯ने कृ꣣त꣡ ओजि꣢꣯ष्ठः꣣ स꣡ बले꣢꣯ हि꣣तः꣢ । द्यु꣣म्नी꣢ श्लो꣣की꣢꣫ स सो꣣म्यः꣢ ॥१२२३॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्रः꣢꣯ । सः । दा꣡म꣢꣯ने । कृ꣣तः꣢ । ओ꣡जि꣢꣯ष्ठः । सः । ब꣡ले꣢꣯ । हि꣣तः꣢ । द्यु꣣म्नी꣢ । श्लो꣣की꣢ । सः । सो꣣म्यः꣢ ॥१२२३॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रः स दामने कृत ओजिष्ठः स बले हितः । द्युम्नी श्लोकी स सोम्यः ॥१२२३॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्रः । सः । दामने । कृतः । ओजिष्ठः । सः । बले । हितः । द्युम्नी । श्लोकी । सः । सोम्यः ॥१२२३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1223
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
Acknowledgment
विषय - द्युम्नी, श्लोकी, सोम्य
पदार्थ -
गत मन्त्र में (‘तमिन्द्रं वाजयामसि') = 'हम आत्मा के ही बल को बढ़ाते हैं' ऐसा कहा था । आत्मिक-बल को बढ़ानेवाला यह व्यक्ति १. (इन्द्रः) = परमैश्वर्यवाला होता हुआ (सः) = वह (दामने) = देने में (कृतः) = संलग्न होता है, अर्थात् दान में लगा रहता है । २. (ओजिष्ठ:) = विषयों में न फँसने के कारण अत्यन्त ओजस्वी (सः) = यह (बले) = बल-सम्पन्न होने पर (हितः) = सबका हित करनेवाला होता है । यह बल का प्रयोग औरों की हानि के लिए न करके सबके लाभ के लिए ही करता है । ३. (द्युम्नी) = यह ज्योतिवाला होता है [Splendour], शक्तिशाली होता है [Energy ], उत्तम धनवाला बनता है [Wealth], प्रभु की प्रेरणा को सुनता है [Inspiration], और त्याग की वृत्तिवाला होता है [Sacrifice], ४. (श्लोकी) = ज्ञान, धन और शक्ति के साथ यह प्रभु-स्तवन-[Hymn] वाला होता है, अतएव उत्तम यश [fame] को प्राप्त करता है और इस सबके साथ (सः) = वह ५. (सोम्य) = सौम्यविनीत व शान्त-स्वभाववाला होता है ।
भावार्थ -
हम धन का दान करें, बल का लोकहित में प्रयोग करें । ज्योति व यश को प्राप्त करें । सौम्य बनें ।
इस भाष्य को एडिट करें