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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1262
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः स देवरातः कृत्रिमो वैश्वामित्रः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
ए꣣ष꣢꣫ दिवं꣣ वि꣡ धा꣢वति ति꣣रो꣡ रजा꣢꣯ꣳसि꣣ धा꣡र꣢या । प꣡व꣢मानः꣣ क꣡नि꣢क्रदत् ॥१२६२॥
स्वर सहित पद पाठए꣣षः꣢ । दि꣡व꣢꣯म् । वि । धा꣣वति । तिरः꣢ । र꣡जा꣢꣯ꣳसि । धा꣡र꣢꣯या । प꣡व꣢꣯मानः । क꣡नि꣢꣯क्रदत् ॥१२६२॥
स्वर रहित मन्त्र
एष दिवं वि धावति तिरो रजाꣳसि धारया । पवमानः कनिक्रदत् ॥१२६२॥
स्वर रहित पद पाठ
एषः । दिवम् । वि । धावति । तिरः । रजाꣳसि । धारया । पवमानः । कनिक्रदत् ॥१२६२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1262
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 7
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 7
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विषय - प्रभु का आह्वान करते हुए
पदार्थ -
जब प्रभु सब कुटिलताओं का शोधन कर देते हैं तब १. (एषः) = यह प्रभुभक्त (धारया) = [धारा=वाङ्] वेदवाणी के द्वारा (रजांसि तिर:) = रजोगुणों के परे (दिवम्) = प्रकाश की ओर (वि-धावति) = विशेषरूप से गति करता है [तिर:- across ] । २. रजोगुण से ऊपर उठकर सत्त्वगुण को प्राप्त करता हुआ यह भक्त (पवमानः) = अपने जीवन को पवित्र करनेवाला होता है। रजोगुण में ही सब राग-द्वेष थे, रजोगुण गया तो राग-द्वेष आदि मल भी नष्ट हो गये । ३. (कनिक्रदत्) = इसी रजोगुण से ऊपर उठने के उद्देश्य से ही यह निरन्तर उस प्रभु का आह्वान करता है । यह प्रभु का स्मरण ही उसे वह शक्ति प्राप्त कराएगा, जिससे यह अपनी सब कलुषित वासनाओं को जीत पाएगा।
वासनाओं का जीतना ही इसे उन्नति की ओर - प्रकाश की ओर, द्युलोक की ओर ले जाएगा।
भावार्थ -
हम प्रभु को पुकारें, जिससे हम पवित्र बनें । हम रजोगुण से ऊपर उठकर सत्त्वगुण में अवस्थित हों ।
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