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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1273
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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ए꣣त꣢मु꣣ त्यं꣢꣫ दश꣣ क्षि꣢पो꣣ ह꣡रि꣢ꣳ हिन्वन्ति꣣ या꣡त꣢वे । स्वा꣣युधं꣢ म꣣दि꣡न्त꣢मम् ॥१२७३॥

स्वर सहित पद पाठ

ए꣣त꣢म् । उ꣣ । त्य꣢म् । द꣡श꣢꣯ । क्षि꣡पः꣢꣯ । ह꣡रि꣢꣯म् । हि꣣न्वन्ति । या꣡त꣢꣯वे । स्वा꣣युध꣢म् । सु꣣ । आयुध꣢म् । म꣣दि꣡न्त꣢मम् ॥१२७३॥


स्वर रहित मन्त्र

एतमु त्यं दश क्षिपो हरिꣳ हिन्वन्ति यातवे । स्वायुधं मदिन्तमम् ॥१२७३॥


स्वर रहित पद पाठ

एतम् । उ । त्यम् । दश । क्षिपः । हरिम् । हिन्वन्ति । यातवे । स्वायुधम् । सु । आयुधम् । मदिन्तमम् ॥१२७३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1273
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
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पदार्थ -

(उ) = निश्चय से (त्यम्) = उस (हरिम्) = सब दुःखों का हरण करनेवाले, (सु-आयुधम्) = शत्रुओं के नाश के लिए आयुधरूप (मदिन्तमम्) = हमारे जीवनों को अत्यन्त उल्लासमय बनानेवाले (एतम्) = प्रभु को (यातवे) = यातुओं की निवृति के लिए [मशकाय धूम इति= मच्छरों के हटाने के लिए धुँआ है], राक्षसी वृत्तियों को दूर करने के लिए (दश क्षिपः) = दस अंगुलियाँ [दोनों हाथ ] (हिन्वन्ति) = प्रेरित होती हैं, अर्थात् प्रभु के प्रति की गयी प्रणामाञ्जलि सब आसुर वृत्तियों को दूर भगानेवाली होती है। 

भावार्थ -

हम प्रभु को प्रणाम करें, जिससे सब असुर प्रणत हो जाएँ।

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