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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1280
ऋषिः - प्रियमेध आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
ए꣣ष꣢ वा꣣जी꣢ हि꣣तो꣡ नृभि꣢꣯र्विश्व꣣वि꣡न्मन꣢꣯स꣣स्प꣡तिः꣢ । अ꣢व्यं꣣ वा꣢रं꣣ वि꣡ धा꣢वति ॥१२८०॥
स्वर सहित पद पाठए꣣षः꣢ । वा꣣जी꣢ । हि꣣तः꣢ । नृ꣡भिः꣢꣯ । वि꣣श्ववि꣢त् । वि꣣श्व । वि꣢त् । म꣡नसः꣢꣯ । प꣡तिः꣢꣯ । अ꣡व्य꣢꣯म् । वा꣡र꣢꣯म् । वि । धा꣣वति ॥१२८०॥
स्वर रहित मन्त्र
एष वाजी हितो नृभिर्विश्वविन्मनसस्पतिः । अव्यं वारं वि धावति ॥१२८०॥
स्वर रहित पद पाठ
एषः । वाजी । हितः । नृभिः । विश्ववित् । विश्व । वित् । मनसः । पतिः । अव्यम् । वारम् । वि । धावति ॥१२८०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1280
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - मानव हितैषी
पदार्थ -
प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि ‘प्रियमेध आङ्गिरस' है- प्रिय है मेधा जिसको, और जो अङ्ग-अङ्ग में रसवाला है— शक्तिशाली अङ्गोंवाला है। (एषः) = यह १. (वाजी) = शक्तिशाली बनता है [वाज—Power] चूँकि गतिशील है [वज गतौ] । २. (नृभिः हित:) = [ हेतु में तृतीया] मनुष्यजाति के उद्देश्य से यह उस-उस क्रिया में रक्खा हुआ होता है। इसकी प्रत्येक क्रिया मानव के हित के विचार से होती है। ३. (विश्ववित्) = यह सभी को जाननेवाला या प्राप्त होनेवाला होता है। अपने हित के कार्यों में लगा हुआ यह सभी का ध्यान करता है, सब दुःखियों के समीप स्वयं पहुँचनेवाला होता है । ४. (मनसः पतिः) = हित के कार्यों में लगा हुआ यह कभी अपने को क्रोध आदि का शिकार नहीं होने देता । यह अपने मन का पति होता है— मन को क़ाबू रखता है । जिनका हित करते हैं उनकी विरोधी क्रियाओं से क्रुद्ध हो उठना स्वाभाविक है, अतः यह प्रियमेध अपने मन को वश में करने का ध्यान करता है । ५. इन क्रोध इत्यादि के आक्रमण से बचने के लिए यह (अव्यम्) = रक्षा में उत्तम उस (वारम्) = वरणीय प्रभु की ओर (विधावति) = दौड़ता है। सदा उस प्रभु के चरणों में उपस्थित रहता है—तभी तो क्रोधादि के वशीभूत नहीं होता।
भावार्थ -
हमारी सब क्रियाएँ मानव के हित के लिए हों, हम अपने मन के पति बनें, प्रभुचरणों में प्रात:-सायं उपस्थित हों।
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