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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1284
ऋषिः - प्रियमेध आङ्गिरसः (प्रथमपादः) नृमेध आङ्गिरसः (शेषास्त्रयः पादाः)
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
ए꣣ष꣡ सूर्य꣢꣯मरोचय꣣त्प꣡व꣢मानो꣣ अ꣢धि꣣ द्य꣡वि꣢ । प꣣वि꣡त्रे꣢ मत्स꣣रो꣡ मदः꣢꣯ ॥१२८४
स्वर सहित पद पाठएषः꣢ । सू꣡र्य꣢꣯म् । अ꣣रोचयत् । प꣡व꣢꣯मानः । अ꣡धि꣢꣯ । द्य꣡वि꣢꣯ । प꣣वि꣡त्रे꣢ । म꣣त्सरः꣢ । म꣡दः꣢꣯ ॥१२८४॥
स्वर रहित मन्त्र
एष सूर्यमरोचयत्पवमानो अधि द्यवि । पवित्रे मत्सरो मदः ॥१२८४
स्वर रहित पद पाठ
एषः । सूर्यम् । अरोचयत् । पवमानः । अधि । द्यवि । पवित्रे । मत्सरः । मदः ॥१२८४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1284
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
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विषय - ज्ञान के सूर्य का उदय
पदार्थ -
(एषः) = यह १. (पवमानः) = अपने जीवन को अन्दर व बाहर से पवित्र करता हुआ २. (अधिद्यवि) = मस्तिष्करूप द्युलोक में (सूर्यम्) = ज्ञानरूप सूर्य को (अरोचयत्) = दीप्त करता है। इसका शरीर नीरोग बनता है [बाह्य पवित्रता], मन निर्मल बनता है [अन्तः पवित्रता] और इन दोनों पवित्रताओं के परिणामस्वरूप इसके मस्तिष्करूप द्युलोक में ज्ञान के सूर्य का उदय होता है । ३. (पवित्रे) = उस पवित्र प्रभु में स्नान करता हुआ यह (मत्सरः) = सब लोगों में उल्लास का संचार करनेवाला होता है, लोगों को प्रभु का सन्देश सुनाकर उत्साहित करता है और ४. (मदः) = सदा उल्लासमय जीवनवाला होता है |
भावार्थ -
ज्ञान के सूर्योदय के साथ हमारा जीवन उल्लासमय हो ।
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