Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1283
ऋषिः - प्रियमेध आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
ए꣣ष꣢꣫ वृषा꣣ क꣡नि꣢क्रदद्द꣣श꣡भि꣢र्जा꣣मि꣡भि꣢र्य꣣तः꣢ । अ꣣भि꣡ द्रोणा꣢꣯नि धावति ॥१२८३॥
स्वर सहित पद पाठए꣣षः꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । क꣡नि꣢꣯क्रदत् । द꣣श꣡भिः꣢ । जा꣣मि꣡भिः꣢ । य꣣तः꣢ । अ꣣भि꣢ । द्रो꣡णा꣢꣯नि । धा꣣वति ॥१२८३॥
स्वर रहित मन्त्र
एष वृषा कनिक्रदद्दशभिर्जामिभिर्यतः । अभि द्रोणानि धावति ॥१२८३॥
स्वर रहित पद पाठ
एषः । वृषा । कनिक्रदत् । दशभिः । जामिभिः । यतः । अभि । द्रोणानि । धावति ॥१२८३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1283
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
Acknowledgment
विषय - अन्तः व बाह्य पवित्रता
पदार्थ -
२ (एषः) = यह प्रियमेध १. (वृषा) = शक्तिशाली होता है, वासनाओं का विनाश करके यह सोमशक्ति की रक्षा के द्वारा 'आङ्गिरस' अङ्ग-प्रत्यङ्ग में शक्तिवाला बनता है, वृषा होता है । २. (कनिक्रदत्) = वासनाओं से सदा बचे रहने के लिए यह प्रभु का खूब ही आह्वान करता है, सदा प्रभु के नामों का उच्चारण करता है । ३. (दशभिः जामिभिः) = दसों विषयों का अदन करने - [जभ=खाना]-वाली इन्द्रियों के दृष्टिकोण से यह (यतः) = संयत होता है। प्रभु-स्मरण के द्वारा यह इन्द्रियों को वश में करनेवाला बनता है और ४. (द्रोणानि) = गति के आधारभूत शरीरों - अपने [स्थूल व सूक्ष्म दोनों ही शरीरों को] (अभिधावति) = पवित्र कर डालता है। प्रभु-भक्त का शरीर नीरोग होता है और मन व बुद्धि भी निर्मल होते हैं । यह अन्दर व बाहर दोनों ओर से पवित्र होता है।
भावार्थ -
मैं प्रभु-स्मरण से जितेन्द्रिय बनूँ । जितेन्द्रिय बनकर पवित्र होऊँ, निर्मल बनूँ
इस भाष्य को एडिट करें