Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1292
ऋषिः - राहूगण आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
स꣢ सु꣣तः꣢ पी꣣त꣢ये꣣ वृ꣢षा꣣ सो꣡मः꣢ प꣣वि꣡त्रे꣢ अर्षति । वि꣣घ्न꣡न्रक्षा꣢꣯ꣳसि देव꣣युः꣢ ॥१२९२॥
स्वर सहित पद पाठसः꣢ । सु꣣तः꣢ । पी꣣त꣡ये꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । सो꣡मः꣢꣯ । प꣣वि꣡त्रे꣢ । अ꣣र्षति । विघ्न꣢न् । वि꣣ । घ्न꣢न् । र꣡क्षा꣢꣯ꣳसि । दे꣣वयुः꣢ ॥१२९२॥
स्वर रहित मन्त्र
स सुतः पीतये वृषा सोमः पवित्रे अर्षति । विघ्नन्रक्षाꣳसि देवयुः ॥१२९२॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । सुतः । पीतये । वृषा । सोमः । पवित्रे । अर्षति । विघ्नन् । वि । घ्नन् । रक्षाꣳसि । देवयुः ॥१२९२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1292
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
विषय - सुत से देवयु बनना
पदार्थ -
प्रस्तुत मन्त्रों का ऋषि‘राहूगण: आङ्गिरसः' है—त्यागियों में गिनने योग्य, शक्तिशाली । (सः) = वह राहूगण १. (सुतः) = [सुतमस्यातीति] यज्ञादि उत्तम निर्माण कार्यों में लगा रहता है । २. इसीलिए (पीतये) = अपनी रक्षा के लिए समर्थ होता है। उत्तम कर्मों में लगा रहता है, परणामतः वासनाओं से अभिभूत नहीं होता । ३. वासनाओं से अभिभूत न होने के कारण (वृषा) = अद्भुत् शक्तिवाला बनता है । ४. इस सात्त्विक शक्ति के अनुपात में ही (सोमः) = यह सौम्य व शान्त होता है सोम बनकर यह (पवित्रे) = पवित्र प्रभु में (अर्षति) = विचरण करता है ६. पवित्र प्रभु में विचरण करता हुआ यह (रक्षांसि विघ्नन्) = राक्षसी वृत्तियों को विशेषरूप से कुचल डालता है ७. जितना - जितना यह राक्षसी वृत्तियों को कुचलता जाता है उतना ही (देवयुः) = दिव्य गुणों को अपने साथ जोड़नेवाला होता है ।
भावार्थ -
मेरा जीवन 'सुत' - यज्ञों से प्रारम्भ हो, और 'देवयुत्व' - दिव्य गुणों की प्राप्ति पर इसका अन्त हो ।
टिप्पणी -
नोट – गत मन्त्र में जीवन में आगे और आगे बढ़ने का उल्लेख था । प्रस्तुत मन्त्र में उस यात्रा की अग्रगति का चित्रण है। सुत से चलते हैं और देवयु बनकर यात्रान्त होता है ।