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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 135
ऋषिः - कण्वो घौरः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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इ꣣हे꣡व꣢ शृण्व एषां꣣ क꣢शा꣣ ह꣡स्ते꣢षु꣣ य꣡द्वदा꣢꣯न् । नि꣡ यामं꣢꣯ चि꣣त्र꣡मृ꣢ञ्जते ॥१३५॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣣ह꣢ । इ꣣व । शृण्वे । एषाम् । क꣡शाः꣢꣯ । ह꣡स्ते꣢꣯षु । यत् । व꣡दा꣢꣯न् । नि । या꣡म꣢꣯न् । चि꣣त्र꣢म् । ऋ꣣ञ्जते ॥१३५॥


स्वर रहित मन्त्र

इहेव शृण्व एषां कशा हस्तेषु यद्वदान् । नि यामं चित्रमृञ्जते ॥१३५॥


स्वर रहित पद पाठ

इह । इव । शृण्वे । एषाम् । कशाः । हस्तेषु । यत् । वदान् । नि । यामन् । चित्रम् । ऋञ्जते ॥१३५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 135
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3;
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पदार्थ -

हम सब प्रभु से प्रार्थना करते हैं। कुछ की प्रार्थना सुनी जाती है, कुछ की नहीं। हमने गत मन्त्रों में तीन दीप्तियों के लिए प्रार्थना की थी। कुछ को ये प्राप्त हैं, कुछ को नहीं। यह क्यों? इस प्रश्न का उत्तर बड़े सुन्दर शब्दों में यहाँ इस इस प्रकार दिया गया हैं कि (इह एव) = यहाँ ही (एषाम्) = इनकी बात (शृण्वे) = सुनी जाती है (यत्) = जब (कशा) = वाणी (हस्तेषु)  हाथों में (वदान्) =  बोलती है, अर्थात जब ये जैसा कहते हैं वैसा करते हैं, वचन के अनुसार क्रिया होने पर प्रार्थना सुनी जाती है, अन्यथा नहीं। ('यद्वाचा वदति तत् कर्मणा करोति') इन शब्दों में हमारी वाणी और कर्म का समन्वय होना चाहिए, तभी प्रभु हमारी प्रार्थना सुनेंगे और हम इसी जीवन में उन्नत होकर लक्ष्य स्थान पर पहुँच जाएँगे। एक टन उपदेश से एक औंस उदाहरण कहीं अधिक प्रभावशाली होता है। शास्त्रों में भी क्रियावान् को ही पण्डित माना गया है। (‘शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खा:') = शास्त्रों को पढ़कर भी मूर्ख होते ही हैं। 'कहना कुछ, करना कुछ' यही मूर्खता है।

, एवं, जिनकी वाणी हाथों में बोलती है अर्थात् जो क्रियाशील हैं, वे लोग ही (यामन्) = इस जीवन-यात्रा के मार्ग को (चित्रम्) = बड़े अद्भुत प्रकार से बड़ी सुन्दरता से (निऋञ्जते) = निश्चय से अलंकृत करते हैं। शास्त्रानुकूल आचरण से जीवन का सुन्दर बन जाना स्वाभाविक है। कण-कण करके-थोड़ा-थोड़ा करके - उसने इस जीवन को उत्कृष्ट बनाया है, अतः इसका नाम ‘कण्व’ हो गया है। यह कण्व घोरपुत्र अति घोर अर्थात् बहुत उत्कृष्ट जीवनवाला [घोर=noble] है।

भावार्थ -

जो कहें, वह करें। हमारे आगम व प्रयोग में समानता हो । कथनी व करनी में समता ही उच्च जीवन का लक्षण हैं। जैसा बोलूँ, वैसा करूँ।

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