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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1371
ऋषिः - हिरण्यस्तूप आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः काण्ड नाम -
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उ꣡पो꣢ म꣣तिः꣢ पृ꣣च्य꣡ते꣢ सि꣣च्य꣢ते꣣ म꣡धु꣢ म꣣न्द्रा꣡ज꣢नी चोदते अ꣣न्त꣢रा꣣स꣡नि꣢ । प꣡व꣢मानः सन्त꣣निः꣡ सु꣢न्व꣣ता꣡मि꣢व꣣ म꣡धु꣢मान्द्र꣣प्सः꣢꣫ परि꣣ वा꣡र꣢मर्षति ॥१३७१॥

स्वर सहित पद पाठ

उ꣡प꣢꣯ । उ꣣ । मतिः꣢ । पृ꣣च्य꣡ते꣢ । सि꣣च्य꣡ते꣢ । म꣡धु꣢꣯ । म꣣न्द्रा꣡ज꣢नी । म꣣न्द्र । अ꣡ज꣢꣯नी । चो꣣दते । अन्तः꣢ । आ꣣स꣡नि꣢ । प꣡व꣢꣯मानः । स꣣न्तनिः꣢ । स꣣म् । तनिः꣢ । सु꣣न्वता꣢म् । इ꣣व । म꣡धु꣢꣯मान् । द्र꣡प्सः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । वा꣡र꣢꣯म् । अ꣣र्षति ॥१३७१॥


स्वर रहित मन्त्र

उपो मतिः पृच्यते सिच्यते मधु मन्द्राजनी चोदते अन्तरासनि । पवमानः सन्तनिः सुन्वतामिव मधुमान्द्रप्सः परि वारमर्षति ॥१३७१॥


स्वर रहित पद पाठ

उप । उ । मतिः । पृच्यते । सिच्यते । मधु । मन्द्राजनी । मन्द्र । अजनी । चोदते । अन्तः । आसनि । पवमानः । सन्तनिः । सम् । तनिः । सुन्वताम् । इव । मधुमान् । द्रप्सः । परि । वारम् । अर्षति ॥१३७१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1371
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

इस ‘हिरण्यस्तूप’ के जीवन में क्या होता है? इस प्रश्न का उत्तर प्रस्तुत मन्त्र में है— १. (उ) = निश्चय से (मतिः) = बुद्धि (उपपृच्यते) = ठिकाने रहती है । इनकी बुद्धि कभी भेड़ें चराने नहीं [never goes a wool gathering] चली जाती । बुद्धि सदा ठीक-ठाक रहती है— विकृत नहीं होती । २. (मधु सिच्यते) = इनके जीवन में माधुर्य का सञ्चार होता है ('मधुमन्मे निक्रमणं, मधुमन्मे परायणम्') = इनका आना-जाना सारा जीवन ही माधुर्यमय हो जाता है ३. (आसनि अन्तः) = मुख के अन्दर (मन्द्राजनी) = [मन्द्र= हर्ष, अज्=परिक्षेप] चारों ओर आनन्द व सुख का परिक्षेप करनेवाली वाणी (चोदते) = प्रेरित होती है । ४. (पवमानः) = यह हिरण्यस्तूप अपने जीवन को निरन्तर पवित्र करनेवाला होता है । ५. (सुन्वतां सन्तनि: इव) = यह यज्ञशीलों की सन्तान के समान होता है, अर्थात् अत्यन्त यज्ञशील होता है। ६. (मधुमान्) = इन यज्ञ के कार्यों को अत्यन्त माधुर्य से करनेवाला होता है। ७. (द्रप्स:) = [दृप हर्षमोहनयोः] अपने माधुर्यमय प्रचार के कारण यह सज्जन – धार्मिकों को हर्षित करनेवाला होता है, साथ ही दुर्जन – अधार्मिकों को भी विमोहित करनेवाला होता है, वे भी इसके उपदेश से मोहित व वशीभूत हो जाते हैं । ८. इस प्रकार यह 'हिरण्यस्तूप' (परिवारम्) =[वधैसुव कुटुम्बकम्] इस पृथिवीरूप विस्तृत परिवार की ओर (अर्षति) = गतिवाला होता है। 

भावार्थ -

हमारा जीवन भी मति, माधुर्य, व मन्द्रवाणी को लिये हुए हो ।

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