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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1383
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
अ꣡ग्ने꣢ यु꣣ङ्क्ष्वा꣡ हि ये तवाश्वा꣢꣯सो देव सा꣣ध꣡वः꣢ । अ꣢रं꣣ व꣡ह꣢न्त्या꣣श꣡वः꣢ ॥१३८३॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡ग्ने꣢꣯ । यु꣣ङ्क्ष्व꣢ । हि । ये । त꣡व꣢꣯ । अ꣡श्वा꣢꣯सः । दे꣣व । साध꣡वः꣢ । अ꣡र꣢꣯म् । व꣡ह꣢꣯न्ति । आ꣣श꣡वः꣢ ॥१३८३॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने युङ्क्ष्वा हि ये तवाश्वासो देव साधवः । अरं वहन्त्याशवः ॥१३८३॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्ने । युङ्क्ष्व । हि । ये । तव । अश्वासः । देव । साधवः । अरम् । वहन्ति । आशवः ॥१३८३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1383
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - ‘साधु, आशु, अरंवोढा' अश्व
पदार्थ -
मन्त्र संख्या २५ पर इसका अर्थ इस प्रकार है- हे अग्ने- हमारी उन्नति के साधक ! (देव) = दिव्य गुणोंवाले प्रभो! आप (हि) = निश्चय से ये जो (तव) = तेरे (अश्वासः) = घोड़े (साधवः) = यात्रा को सिद्ध करनेवाले, (आशवः) = शीघ्रगामी तथा (अरं वहन्ति) = अनथकरूप से वहन करनेवाले हैं, उनको हमारे शरीररूप रथ में (युङ्क्ष्व) = जोड़िए ।
भावार्थ -
हमारे इन्द्रियरूप अश्व 'साधु, आशु, तथा अरंवोढ़ा' हों, जिससे हमारी जीवनयात्रा पूर्ण हो ।
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