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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1419
ऋषिः - नोधा गौतमः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम -
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सं꣢ मा꣣तृ꣢भि꣣र्न꣡ शिशु꣢꣯र्वावशा꣣नो꣡ वृषा꣢꣯ दधन्वे पुरु꣣वा꣡रो꣢ अ꣣द्भिः꣢ । म꣢र्यो꣣ न꣡ योषा꣢꣯म꣣भि꣡ नि꣢ष्कृ꣣तं꣡ यन्त्सं ग꣢꣯च्छते क꣣ल꣡श꣢ उ꣣स्रि꣡या꣢भिः ॥१४१९॥

स्वर सहित पद पाठ

स꣢म् । मा꣣तृ꣡भिः꣢ । न । शि꣡शुः꣢꣯ । वा꣣वशानः꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । द꣣धन्वे । पुरुवा꣡रः꣢ । पु꣣रु । वा꣡रः꣢꣯ । अ꣣द्भिः꣢ । म꣡र्यः꣢꣯ । न । यो꣡षा꣢꣯म् । अ꣣भि꣢ । नि꣣ष्कृत꣢म् । निः꣣ । कृत꣢म् । यन् । सम् । ग꣣च्छते । कल꣡शे꣢ । उ꣣स्रि꣡या꣢भिः । उ꣣ । स्रि꣡या꣢꣯भिः ॥१४१९॥


स्वर रहित मन्त्र

सं मातृभिर्न शिशुर्वावशानो वृषा दधन्वे पुरुवारो अद्भिः । मर्यो न योषामभि निष्कृतं यन्त्सं गच्छते कलश उस्रियाभिः ॥१४१९॥


स्वर रहित पद पाठ

सम् । मातृभिः । न । शिशुः । वावशानः । वृषा । दधन्वे । पुरुवारः । पुरु । वारः । अद्भिः । मर्यः । न । योषाम् । अभि । निष्कृतम् । निः । कृतम् । यन् । सम् । गच्छते । कलशे । उस्रियाभिः । उ । स्रियाभिः ॥१४१९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1419
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

१. (न) = जैसे (वावशान:) = दूध इत्यादि की प्रबल कामनावाला (शिशुः) = बालक (मातृभिः) = अपनी माताओं के साथ (संदधन्वे) = [धविर्गत्यर्थः] (सङ्गच्छते) = सङ्गत होता है, और २. जिस प्रकार वृषा-अपने को (वृष) = शक्तिशाली बनाने की कामनावाला (पुरुवारः) = अनेक शत्रुओं का निवारण करनेवाला (अद्भिः) = जलों से=[आप: रेतो भूत्वा] (रेतस्) = वीर्यशक्ति से (संदधन्वे) = सङ्गत होता है और ३. (न) = जिस प्रकार (अभिनिष्कृतम्) = सब ओर से परिष्कृत स्थान को, साफ़-सुथरे घर को (यन्) = प्राप्त करने के हेतु से (मर्य:) = मनुष्य (योषाम्) = पत्नी के साथ (संदधन्वे) = सङ्गत होता है, इसी प्रकार ४. (कलश:) = [कला: शेरतेऽस्मिन्] अपने जीवन को सब कलाओं का आधार बनानेवाला - षोडशी बनने की इच्छावाला—पुरुष (उस्त्रियाभि:) = [Brightnes, Light] प्रकाश की किरणों के साथ (सङ्गच्छते) = सङ्गत होता है। ‘उस्रिया' शब्द का अर्थ गौ भी है । यह गौवों के साथ सङ्गत होता है। गो-दुग्ध के प्रयोग से भी अपनी बुद्धि को सात्त्विक बनाकर ज्ञान को बढ़ानेवाला होता है।

प्रस्तुत मन्त्र में तीन उदाहरण हैं– १. प्रथम उदाहरण से 'इच्छा की तीव्रता' का सङ्केत हो रहा है। बच्चे को जब प्रबल भूख लगती है तब वह खेल को छोड़कर माता की ओर जाता है, इसी प्रकार मनुष्य भी सब कलाओं से जीवन को युक्त करने की प्रबल कामना होने पर ही ज्ञान की ओर झुकता है। २. द्वितीय उदाहरण 'कार्यकारणभाव' का प्रदर्शन कर रहा है कि जैसे ऊर्ध्वरेतस् बने बिना शक्ति का सम्भव नहीं, उसी प्रकार सोलह कलाओं की प्राप्ति ज्ञान व ज्ञान-साधन गोदुग्धादि के प्रयोग के बिना नहीं हो सकती ३. तीसरा उदाहरण इसलिए दिया गया है कि जैसे मनुष्य की घर को सुन्दर बनाने की शक्ति उसकी योग्यता में निहित है इसी प्रकार मानव जीवन को सुन्दर बनाने की शक्ति ज्ञान में व ज्ञान की साधनभूत गौवों में निहित है। मनुष्य की पूर्णता पत्नी से है, एवं, मानव के अध्यात्म जीवन की पूर्णता ज्ञान से है । प्रसङ्गवश यह भी स्पष्ट है कि मानव की पूर्णता में गौ का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

भावार्थ -

हम ज्ञान को महत्त्व दें, ज्ञान-साधन गौओं को महत्त्व दें ।

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