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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1440
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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प्र꣡त्य꣢स्मै꣣ पि꣡पी꣢षते꣣ वि꣡श्वा꣢नि वि꣣दु꣡षे꣢ भर । अ꣣रङ्गमा꣢य꣣ ज꣢ग्म꣣ये꣡ऽप꣢श्चादध्वने꣣ न꣡रः꣢ ॥१४४०॥

स्वर सहित पद पाठ

प्र꣡ति꣢꣯ । अ꣣स्मै । पि꣡पी꣢꣯षते । वि꣡श्वा꣢꣯नि । वि꣣दु꣡षे꣢ । भ꣣र । अरङ्गमा꣡य꣢ । अ꣣रम् । ग꣡मा꣢य । ज꣡ग्म꣢꣯ये । अ꣡प꣢꣯श्चादध्वने । अ꣡प꣢꣯श्चा । द꣣ध्वने । न꣡रः꣢꣯ ॥१४४०॥


स्वर रहित मन्त्र

प्रत्यस्मै पिपीषते विश्वानि विदुषे भर । अरङ्गमाय जग्मयेऽपश्चादध्वने नरः ॥१४४०॥


स्वर रहित पद पाठ

प्रति । अस्मै । पिपीषते । विश्वानि । विदुषे । भर । अरङ्गमाय । अरम् । गमाय । जग्मये । अपश्चादध्वने । अपश्चा । दध्वने । नरः ॥१४४०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1440
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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पदार्थ -

३५२ संख्या पर इस मन्त्र का अर्थ इस प्रकार है - 

(प्रति-अस्मै) = प्रत्येक ऐसे व्यक्ति के लिए (नरः) = आगे ले-चलने की भावनाओं को (भर) = परिपूर्ण कीजिए। किसके लिए ?

१. (पिपीषते) = जो रयि और प्राणशक्ति की वृद्धि के लिए सोमपान करना चाहता है, २. (विश्वानि) = न चाहते हुए भी अन्दर प्रवेश करनेवाले काम-क्रोधादि को विदुषे-समझनेवाले के लिए, ३. (अरंगमाय) = [अरं-वारण] – लोकदुःख निवारण के लिए, गतिशील के लिए, ४. (जग्मये) = निरन्तर क्रियाशील के लिए ५. (अपश्चादध्वने) = जीवन में पीछे कदम न रखनेवाले के लिए ।

भावार्थ -

हम १. सोमपान की प्रबल कामनावाले बनें । २. काम-क्रोधादि को आत्मालोचन द्वारा समझें। ३. लोकदुःख निवारण के लिए प्रयत्नशील हों । ४. निरन्तर क्रियाशील बनें । ५. जीवन में कभी पीछे पग न रक्खें ।

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