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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1449
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
प꣡व꣢मान सु꣣वी꣡र्य꣢ꣳ र꣣यि꣡ꣳ सो꣢म रिरीहि णः । इ꣢न्द꣣वि꣡न्द्रे꣢ण नो यु꣣जा꣢ ॥१४४९॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मान । सु꣣वी꣡र्य꣢म् । सु꣣ । वी꣡र्य꣢꣯म् । र꣣यि꣢म् । सो꣣म । रिरीहि । नः । इ꣡न्दो꣢꣯ । इ꣡न्द्रे꣢꣯ण । नः꣣ । युजा꣢ ॥१४४९॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमान सुवीर्यꣳ रयिꣳ सोम रिरीहि णः । इन्दविन्द्रेण नो युजा ॥१४४९॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमान । सुवीर्यम् । सु । वीर्यम् । रयिम् । सोम । रिरीहि । नः । इन्दो । इन्द्रेण । नः । युजा ॥१४४९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1449
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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विषय - सोम से सोम का मिलन
पदार्थ -
हे पवमान (सोम) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले सोम! तू (न:) = हमें (सुवीर्यम्) = उत्तम प्राणशक्ति को तथा (रयिम्) = रयिशक्ति को [प्राणशक्ति ही पुरुष में सुवीर्य व स्त्री में रयि कहलाती है] (रिरीहि) = दे । हमारे शरीरों को वीर्य व रयि से युक्त कर । जिस समय इन रयि व सुवीर्यरूप चन्द्रशक्ति व सूर्यशक्तियों से हमारे शरीर संयुक्त होते हैं तब ये नीरोग, आह्लादमय व प्रकाशयुक्त होते हैं । शरीर नीरोग है तो मन प्रसन्न और बुद्धि उज्ज्वल ।
इस प्रकार हमारे जीवनों को सुन्दर बनाकर सोम हमें उन्नति-पथ पर आगे बढ़ने के योग्य बनाता है। आगे बढ़ते हुए हम एक दिन प्रभु के समीप पहुँचनेवाले हो जाते हैं । मन्त्र का ऋषि ‘असित' सोम से कहता है कि हे (इन्दो) = शक्ति देनेवाले सोम ! तू (इन्द्रेण) = उस परमात्मा से (नः) = हमें (युज) = सङ्गत कर दे । वस्तुत: यह ‘सोम’-वीर्यशक्ति जड़ जगत् की सर्वोत्तम वस्तु है, वह सोम=परमात्मा चेतन जगत् में सर्वश्रेष्ठ है । यह सोम ही उस सोम को प्राप्त कराने में समर्थ है।
भावार्थ -
हे पवित्र करनेवाले सोम! तू हमें सुवीर्य व रयि प्राप्त कराके प्रभु से मेल के योग्य बना दे।
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