Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1476
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
वे꣢त्था꣣ हि꣡ वे꣢धो꣣ अ꣡ध्व꣢नः प꣣थ꣡श्च꣢ दे꣣वा꣡ञ्ज꣢सा । अ꣡ग्ने꣢ य꣣ज्ञे꣡षु꣢ सुक्रतो ॥१४७६॥
स्वर सहित पद पाठवे꣡त्थ꣢꣯ । हि । वे꣣धः । अ꣡ध्व꣢꣯नः । प꣣थः꣢ । च꣣ । देव । अ꣡ञ्ज꣢꣯सा । अ꣡ग्ने꣢꣯ । य꣣ज्ञे꣡षु꣢ । सु꣣क्रतो । सु । क्रतो ॥१४७६॥
स्वर रहित मन्त्र
वेत्था हि वेधो अध्वनः पथश्च देवाञ्जसा । अग्ने यज्ञेषु सुक्रतो ॥१४७६॥
स्वर रहित पद पाठ
वेत्थ । हि । वेधः । अध्वनः । पथः । च । देव । अञ्जसा । अग्ने । यज्ञेषु । सुक्रतो । सु । क्रतो ॥१४७६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1476
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
Acknowledgment
विषय - ज्ञानमार्ग पर आक्रमण, यज्ञमय जीवन
पदार्थ -
प्रभु' मधुच्छन्दाः ' से ही कह रहे हैं कि १. हे (वेध:) = खूब ज्ञान प्राप्त [well learned] करनेवाला तू (अध्वन:) = [journey] जीवन-यात्रा को (हि) = निश्चय से (वेत्थ) = समझता है, क्योंकि तू (अध्वनः) = वेद के पाठों को ['सहस्राध्वा सामवेदः' में अध्वा = शाखा] वेद की सब शाखाओं को (वेत्थ हि) = अच्छी प्रकार जानता है। वेद को समझने से तू जीवन यात्रा को भी समझता है । (च) = और २. हे (देव) = [विजिगीषा] जीवन-यात्रा में विजय की कामनावाले ! तू (पथः) = रास्तों को – जिनपर तुझे चलना है, उनको (अञ्जसा) = अच्छी प्रकार (वेत्थ) = जानता है 'मुझे किस मार्ग पर चलना है' इसका तुझे ठीक ज्ञान है ३. (अने) = हे आगे और आगे चलनेवाले जीव ! (सुक्रतो) = उत्तम सङ्कल्पों को धारण करनेवाले ! तू यज्ञेषु यज्ञों में अपना जीवन बिता । तेरा जीवन-यज्ञमय हो । इसी प्रकार तेरा जीवन सफल होगा और तू यात्रा को पूर्ण करके अपने घर में वापस लौट सकेगा ।
भावार्थ -
हम ज्ञान प्राप्त करें, जीवन के मार्ग को जानें और यज्ञमय जीवन बिताएँ ।
इस भाष्य को एडिट करें