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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1492
ऋषिः - नृमेधपुरुमेधावाङ्गिरसौ
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम -
2
आ꣢ नो꣣ वि꣡श्वा꣢सु꣣ ह꣢व्य꣣मि꣡न्द्र꣢ꣳ स꣣म꣡त्सु꣢ भूषत । उ꣢प꣣ ब्र꣡ह्मा꣢णि꣣ स꣡व꣢नानि वृत्रहन्परम꣣ज्या꣡ ऋ꣢चीषम ॥१४९२॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । नः꣣ । वि꣡श्वा꣢꣯सु । ह꣡व्य꣢꣯म् । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । स꣣म꣡त्सु꣢ । स꣣ । म꣡त्सु꣢꣯ । भू꣣षत । उ꣡प꣢꣯ । ब्र꣡ह्मा꣢꣯णि । स꣡व꣢꣯नानि । वृ꣣त्रहन् । वृत्र । हन् । परमज्याः꣢ । प꣣रम । ज्याः꣢ । ऋ꣣चीषम ॥१४९२॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो विश्वासु हव्यमिन्द्रꣳ समत्सु भूषत । उप ब्रह्माणि सवनानि वृत्रहन्परमज्या ऋचीषम ॥१४९२॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । नः । विश्वासु । हव्यम् । इन्द्रम् । समत्सु । स । मत्सु । भूषत । उप । ब्रह्माणि । सवनानि । वृत्रहन् । वृत्र । हन् । परमज्याः । परम । ज्याः । ऋचीषम ॥१४९२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1492
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - सामूहिक स्तवन [ Congregational Prayers ]
पदार्थ -
२६१ संख्या पर मन्त्रार्थ इस रूप में है -
‘नृमेध और पुरुमेध' प्रस्तुत मन्त्र के ऋषि हैं [मेध-सङ्गम] – - जो सब मनुष्यों के साथ मिलकर चलते हैं और जिनका मेल [पृ-पालनपूरणयोः] पालन व पूरण करनेवाला है। ये कहते हैं कि (न:) = हमारी (विश्वासु समत्सु) = सब सभाओं में (हव्यं इन्द्रम्) = उस पुकारने योग्य प्रभु को (आभूषत) = सब प्रकार से अलंकृत करो, जो (उप) = सदा हमारे समीप हैं। ऐसा करने से (ब्रह्माणि) = हमारे जीवन में स्तोत्र होंगे, (सवनानि) = यज्ञ होंगे ।
वे प्रभु (वृत्रहन्) = वृत्रों को समाप्त करनेवाले हैं, (परमज्या) = एक प्रबल शक्ति हैं, (ऋचीषम) = स्तुति के समान गुणोंवाले हैं - उन उन गुणों को हमें भी प्राप्त करानेवाले हैं।
भावार्थ -
हम एकत्र होने पर सदा प्रभु-स्तवन करें, जिससे हमारा जीवन ज्ञानमय व यज्ञमय हो ।
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