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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1497
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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इ꣣म꣢मू꣣ षु꣢꣫ त्वम꣣स्मा꣡क꣢ꣳ स꣣निं꣡ गा꣢य꣣त्रं꣡ नव्या꣢꣯ꣳसम् । अ꣡ग्ने꣢ दे꣣वे꣢षु꣣ प्र꣡ वो꣢चः ॥१४९७॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣣म꣢म् । ऊ꣣ । सु꣢ । त्वम् । अ꣣स्मा꣡क꣢म् । स꣣नि꣢म् । गा꣣यत्र꣢म् । न꣡व्यां꣢꣯सम् । अ꣡ग्ने꣢꣯ । दे꣣वे꣡षु꣢ । प्र । वो꣣चः ॥१४९७॥


स्वर रहित मन्त्र

इममू षु त्वमस्माकꣳ सनिं गायत्रं नव्याꣳसम् । अग्ने देवेषु प्र वोचः ॥१४९७॥


स्वर रहित पद पाठ

इमम् । ऊ । सु । त्वम् । अस्माकम् । सनिम् । गायत्रम् । नव्यांसम् । अग्ने । देवेषु । प्र । वोचः ॥१४९७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1497
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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पदार्थ -

प्रस्तुत मन्त्र २८ संख्या पर इस रूप में व्याख्यात हुआ है

हे (अग्ने) = हमारी अग्रगति के साधक प्रभो ! (त्वम्) = आप (अस्माकम्) = हमारे (देवेषु) = देवों में शरीर में रहनेवाले देवांशों में (इमम्) = इस (सनिम्) = संविभाग के (गायत्रम्) = आपके अर्चन के तथा (नव्यांसम्) = स्तुति के–निन्दात्मक शब्दों का प्रयोग न करके स्तुति-वचनों के पाठ को (उ) = निश्चय से (सु) = अच्छी प्रकार (प्रवोचः) = प्रवचन कर दें। 

भावार्थ -

हम अपने जीवनों में संविभागपूर्वक उपभोग करनेवाले हों, लोक सेवा द्वारा प्रभु अर्चना करनेवाले हों तथा सदा स्तुत्यात्मक वचनों के ही बोलनेवाले हों । इसी प्रकार हम अपने जीवनों में [शुन= सुख, शेप बनाना] सुख का निर्माण करके प्रस्तुत मन्त्र के ऋषि 'शुन: शेप' बन पाएँगे।

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