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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1573
ऋषिः - मेध्यातिथिः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम -
3
अ꣣भि꣡ त्वा꣢ पू꣣र्व꣡पी꣢तय꣣ इ꣢न्द्र꣣ स्तो꣡मे꣢भिरा꣣य꣡वः꣢ । स꣣मीचीना꣡स꣢ ऋ꣣भ꣢वः꣣ स꣡म꣢स्वरन्रु꣣द्रा꣡ गृ꣢णन्त पू꣣र्व्य꣢म् ॥१५७३॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡भि꣢ । त्वा꣣ । पूर्व꣡पी꣢तये । पू꣣र्व꣢ । पी꣣तये । इ꣡न्द्र꣢꣯ । स्तो꣡मे꣢꣯भिः । आ꣣य꣡वः꣢ । स꣣मीचीना꣡सः꣢ । स꣣म् । ईचीना꣡सः꣢ । ऋ꣣भ꣡वः꣢ । ऋ꣣ । भ꣡वः꣢꣯ । सम् । अ꣣स्वरन् । रुद्राः꣢ । गृ꣣णन्त । पूर्व्य꣢म् ॥१५७३॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि त्वा पूर्वपीतय इन्द्र स्तोमेभिरायवः । समीचीनास ऋभवः समस्वरन्रुद्रा गृणन्त पूर्व्यम् ॥१५७३॥
स्वर रहित पद पाठ
अभि । त्वा । पूर्वपीतये । पूर्व । पीतये । इन्द्र । स्तोमेभिः । आयवः । समीचीनासः । सम् । ईचीनासः । ऋभवः । ऋ । भवः । सम् । अस्वरन् । रुद्राः । गृणन्त । पूर्व्यम् ॥१५७३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1573
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - पूर्वपीति के लिए
पदार्थ -
प्रस्तुत मन्त्र का अर्थ २५६ संख्या पर इस प्रकार दिया गया है -
हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशाली प्रभो! (पूर्व्यम्) = औरों में ऐश्वर्य का पूरण करनेवाले पुरुषोत्तम (त्वा) = आपको (स्तोमेभिः) = स्तुति-समूहों से अभि- दोनों ओर प्राकृतिक दृश्यों में बाहिर और शरीर की रचना में अन्दर समस्वरन् स्तुत करते हैं । कौन ?
१. (आयवः) = गतिशील व्यक्ति, २. (समीचीनासः) = उत्तम निर्माणात्मक गति के कारण जो लोक में पूजित होते हैं । ३. (ऋभवः) = जिनका मनोमयकोश सत्य से दीप्त है । ४. (रुद्रः) =जो ज्ञान के ग्रहण करनेवाले हैं। ये लोग प्रभु का ज्ञान प्राप्त करके उस (पूर्व्यम्) = पूरण करनेवाले प्रभु का ही (गृणन्त) = उपदेश करते हैं। ये सब कार्य ये (पूर्वपीतिये) = अपना पूरण व पालन तथा रक्षा के लिए ही करते हैं।
भावार्थ -
हम प्रभु के सच्चे उपासक व उपदेष्टा बनें ।
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