Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1588
ऋषिः - मेध्यातिथिः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती) स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम -
2

इ꣡न्द्रो꣢ म꣣ह्ना꣡ रोद꣢꣯सी पप्रथ꣣च्छ꣢व꣣ इ꣢न्द्रः꣣ सू꣡र्य꣢मरोचयत् । इ꣡न्द्रे꣢ ह꣣ वि꣢श्वा꣣ भु꣡व꣢नानि येमिर꣣ इ꣡न्द्रे꣢ स्वा꣣ना꣢स꣣ इ꣡न्द꣢वः ॥१५८८॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣡न्द्रः꣢꣯ । म꣣ह्ना꣢ । रो꣡द꣢꣯सी꣣इ꣡ति꣢ । प꣣प्रथत् । श꣡वः꣢꣯ । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । सू꣡र्य꣢꣯म् । अ꣣रोचयत् । इ꣡न्द्रे꣢꣯ । ह꣢ । वि꣡श्वा꣢꣯ । भु꣡व꣢꣯नानि । ये꣣मिरे । इ꣡न्द्रे꣢꣯ । स्वा꣣ना꣡सः꣢ । इ꣡न्द꣢꣯वः ॥१५८८॥


स्वर रहित मन्त्र

इन्द्रो मह्ना रोदसी पप्रथच्छव इन्द्रः सूर्यमरोचयत् । इन्द्रे ह विश्वा भुवनानि येमिर इन्द्रे स्वानास इन्दवः ॥१५८८॥


स्वर रहित पद पाठ

इन्द्रः । मह्ना । रोदसीइति । पप्रथत् । शवः । इन्द्रः । सूर्यम् । अरोचयत् । इन्द्रे । ह । विश्वा । भुवनानि । येमिरे । इन्द्रे । स्वानासः । इन्दवः ॥१५८८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1588
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
Acknowledgment

पदार्थ -

१. (इन्द्रः) = वे परमैश्वर्यशाली इन्द्र (मह्नाम्) = अपनी महिमा से (रोदसी) = द्युलोक व पृथिवीलोक में (शवः पप्रथत्) = अपने बल का विस्तार करते हैं । ब्रह्माण्ड के कण-कण में उस प्रभु की शक्ति कार्य करती हुई दृष्टिगोचर होती है।

२. (इन्द्रः) = वह प्रभु ही तो (सूर्यम्) = सूर्य को (अरोचयत्) = प्रकाशवाला कर रहा है। '(न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रदारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतो यमग्निः । तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति'') =  उस प्रभु को सूर्य, चन्द्र, तारे व विद्युत् प्रकाशित नहीं करते । इस अग्नि ने तो प्रकाशित करना ही क्या ? उसी की दीप्ति से ये सब दीप्त हो रहे हैं, वही इन सबको दीप्त कर रहा है । ३. (ह) = निश्चय से (इन्द्रे) = उस महान् नियामक, शासक प्रभु में ही विश्वा (भुवनानि) = सब लोक लोकान्तर (येमिरे) = नियमित हुए हैं। उसी की व्यवस्था में ये सब लोक चल रहे हैं। ४. (इन्द्रे) = उस शक्तिशाली प्रभु में (इन्दवः) = बड़े शक्तिशाली (स्वानासः) = शब्द हैं । इन शब्दों से ही उस प्रभु ने पृथक्-पृथक् संस्थाओं [सूर्य आदि आकृतियों] का निर्माण किया है। 

भावार्थ -

मेधातिथि=समझदार व्यक्ति वही है जो कण-कण में प्रभु की शक्ति का अनुभव करता है ।
 

इस भाष्य को एडिट करें
Top