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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1640
ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
1

व्या꣢३꣱न्त꣡रि꣢क्षमतिर꣣न्म꣢दे꣣ सो꣡म꣢स्य रोच꣣ना꣢ । इ꣢न्द्रो꣣ य꣡दभि꣢꣯नद्व꣣ल꣢म् ॥१६४०॥

स्वर सहित पद पाठ

वि । अ꣣न्त꣡रि꣢क्षम् । अ꣣तिरत् । म꣡दे꣢꣯ । सो꣡म꣢꣯स्य । रो꣣चना꣢ । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । यत् । अ꣡भि꣢꣯नत् । व꣣ल꣢म् ॥१६४०॥


स्वर रहित मन्त्र

व्या३न्तरिक्षमतिरन्मदे सोमस्य रोचना । इन्द्रो यदभिनद्वलम् ॥१६४०॥


स्वर रहित पद पाठ

वि । अन्तरिक्षम् । अतिरत् । मदे । सोमस्य । रोचना । इन्द्रः । यत् । अभिनत् । वलम् ॥१६४०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1640
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

आधिदैविक जगत् में (‘इन्द्र') = सूर्य है तथा ('वल') = मेघ है। सूर्य अपनी किरणों से मेघ को छिन्नभिन्न कर देता है। अध्यात्म में इन्द्र-जीवात्मा है तथा वल= वे सब आसुर वृत्तियाँ हैं जो [वल् to hurt] जीव की उन्नति में विघातक होती हैं । (यत्) = जब (इन्द्र) = जीवात्मा (वलम्) = इन आसुर वृत्तियों को (अभिनत्) = विदीर्ण करता है तब (सोमस्य मदे) = अन्तः स्थित वीर्यशक्ति-जनित उल्लास में (रोचना) = प्रकाशमय (अन्तरिक्षम्) = हृदयान्तरिक्ष को (वि आ अतिरत्) = मलों से सर्वथा मुक्त कर लेता है [तृ=to litbrate from]। निम्न हैं—

एवं, आसुर वृत्तियों के संहार के परिणाम

१. सोम की रक्षा होती है— उससे जीवन में एक विशेष उल्लास उत्पन्न होता है [सोमस्य मदे],

२. हृदयान्तरिक्ष प्रकाशमय होता है [रोचना],

३. हृदय राग-द्वेषादि मलों से रहित हो जाता है ।

इस प्रकार हृदय नैर्मल्य से ज्ञानेन्द्रियाँ व कर्मेन्द्रियाँ भी ठीक काम करने लगती हैं। इनके ठीक काम करने से यह ऋषि गोसूक्ति व अश्वसूक्ति बनता है ।

भावार्थ -

हम आसुर वृत्तियों का संहार करनेवाले बनें ।

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