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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1714
ऋषिः - अवत्सारः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
उ꣢त्ते꣣ शु꣡ष्मा꣢सो अस्थू꣣ र꣡क्षो꣢ भि꣣न्द꣡न्तो꣢ अद्रिवः । नु꣣द꣢स्व꣣ याः꣡ प꣢रि꣣स्पृ꣡धः꣢ ॥१७१४॥
स्वर सहित पद पाठउ꣢त् । ते꣣ । शु꣡ष्मा꣢꣯सः । अ꣣स्थुः । र꣡क्षः꣢꣯ । भि꣣न्द꣡न्तः꣢ । अ꣣द्रिवः । अ । द्रिवः । नुद꣡स्व꣢ । याः । प꣣रिस्पृ꣡धः꣢ । प꣣रि । स्पृ꣡धः꣢꣯ ॥१७१४॥
स्वर रहित मन्त्र
उत्ते शुष्मासो अस्थू रक्षो भिन्दन्तो अद्रिवः । नुदस्व याः परिस्पृधः ॥१७१४॥
स्वर रहित पद पाठ
उत् । ते । शुष्मासः । अस्थुः । रक्षः । भिन्दन्तः । अद्रिवः । अ । द्रिवः । नुदस्व । याः । परिस्पृधः । परि । स्पृधः ॥१७१४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1714
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - प्रभु के आतिथ्य के परिणाम
पदार्थ -
प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि' अवत्सारः काश्यपः' है–‘सार= शक्ति की रक्षा करनेवाला ज्ञानी', शरीर में पहलवान तथा आत्मा में ऋषि । गत मन्त्र में इसने प्रभु के स्वागत की तैयारी की थी । प्रभु का आतिथ्य करने पर, प्रभु इससे कहते हैं -
१. (ते) = तेरे (शुष्मासः) = वासनारूप शत्रुओं का शोषण करनेवाले बल (उत् अस्थुः) = उन्नत होकर स्थित होते हैं। प्रभु के सम्पर्क में जीव में शक्ति का संचार न हो यह तो सम्भव ही नहीं ।
२. (रक्षः भिन्दन्तः) = तेरे ये बल राक्षसवृत्तियों का विदारण करनेवाले हैं। प्रभु के सम्पर्क से प्राप्त होनेवाला सात्त्विक बल हमें अपने रमण [मौज] के लिए औरों का क्षय करनेवाली राक्षसी वृत्तियों के हनन व विदारण में समर्थ करता है ।
३. हे (अद्रिवः) = अपने संकल्प से विचलित न होनेवाले इन्द्र! तू (नुदस्व) = परे ढकेल दे । किनको ? (याः परिस्पृधः) = जो तेरी उन्नति की स्पर्धा करनेवाले हैं— जो तेरी उन्नति को समाप्त करने के लिए प्रबल उत्कण्ठावाले तेरे शत्रु हैं । काम, क्रोध, लोभ आदि मनुष्य के प्रमुख शत्रु हैं, ये उसकी उन्नति को समाप्त करने में लगे हैं । यह अवत्सार प्रभु के आतिथ्य के द्वारा इनको परे धकेल देता है— अपने समीप नहीं फटकने देता।
भावार्थ -
हम प्रभु का आतिथ्य करनेवाले बनें । इसके हमारे जीवन में निम्न परिणाम होंगे१. शक्ति की वृद्धि, २. राक्षसों का विदारण, ३. वासनाओं का विनाश ।
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